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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


‘अच्छा, जो उस दिन तुमने गडेरिये वाली कहानी सुनायी थी जिसमें आसफुद्दौला ने उसकी लड़की का आँचल भुने हुए भुट्टे के दानों के बदले मोतियों से भर दिया था, यह क्या सच है?’

‘सच? अरे वह गरीब लड़की भूख से उसे चबाकर थू-थू करने लगी... रोने लगी। ऐसी निर्दय दिल्लगी बड़े ही लोग ही कर बैठते हैं। सुना है श्रीरामचंद्र ने भी हनुमान से ऐसा ही...’

ठाकुर साहब ठठाकर हँसने लगे। पेट पकड़कर हँसते-हँसते लोट गये। साँस बटोरते हुए सम्हलकर बोले–‘और बड़प्पन कहते किसे हैं? कंगाल तो कंगाल! गधी लड़की! भला उसने कभी मोती देखे थे, चबाने लगी होगी। मैं सच कहता हूँ आज तक तुमने जितनी कहानियाँ सुनायी, सबमें बड़ी टीस थी। शाहजादों के दुखड़े, रंग-महल की अभागिनी बेगमों के निष्फल प्रेम, करुणा-कथा और पीड़ा से भरी हुई कहानियाँ ही तुम्हें आती हैं, पर ऐसी हँसाने वाली कहानी और सुनाओ, तो मैं तुम्हें अपने सामने ही बढ़िया शराब पिला सकता हूँ।’

‘सरकार! बूढ़ी से सुने हुए वे नवाबी के सोने-से दिन, अमीरों की रंगरेलियाँ, दुखड़े की दर्द-भरी आहें, रंग-महलों में घुल-घुलकर मरने वाली बेगमें, अपने आप सिर में चक्कर काटती रहती हैं। मैं उनकी पीड़ा से रोने लगता हूँ। अमीर कंगाल हो जाते हैं। बड़ों-बड़ों के घमंड चूर होकर धूल में मिल जाते हैं। तब भी दुनिया बड़ी पागल है। मैं उनके पागलपन को भूलने के लिए शराब पीने लगता हूँ–सरकार! नहीं तो यह बुरी बला कौन अपने गले लगाता?’

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