कहानी संग्रह >> गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह) गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है
ठाकुर साहब ऊँघने लगे थे। अँगीठी का कोयला दहक रहा था। शराबी सरदी से ठिठुरा जा रहा था। वह हाथ सेंकने लगा। सहसा नींद से चौंककर ठाकुर साहब ने कहा–‘अच्छा जाओ, मुझे नींद लग रही है। वह देखो, एक रुपया पड़ा है, उठा लो। लल्लू को भेजते जाओ।’
शराबी रुपया उठाकर धीरे से खिसका। लल्लू ठाकुर साहब का जमादार था। उसे खोजते हुए जब वह फाटक पर की बगल वाली कोठरी के पास पहुँचा, तो उसे सुकुमार कंठ से सिसकने का शब्द सुनायी पड़ा। वह खड़ा होकर सुनने लगा।
‘तो सूअर रोता क्यों है? कुँवर साहब ने दो ही लात न लगायी है। कुछ गोली तो नहीं मार दी?’–कर्कश-स्वर में लल्लू बोल रहा थाः किन्तु उत्तर मं् सिसकियों के साथ एकाध हिचकी भी सुनायी पड़ जाती थी। अब और भी कठोरता से लल्लू ने कहा– ‘मधुआ! जा सो रह। नख़रा न कर, नहीं तो उठूंगा तो खाल उधेड़ दूँगा। समझा न?’
शराबी चुपचाप सुन रहा था। बालक की सिसकी और बढ़ने लगी। फिर उसे सुनायी पड़ा-‘ले अब भागता है कि नहीं? क्यों मार खाने पर तुला है?’
भयभीत बालक बाहर चला आ रहा था। शराबी ने उसके छोटे से सुन्दर गोरे मुँह को देखा। आँसू की बूंदे ढुलक रही थीं। बड़े दुलार से उसका मुँह पोछते हुए उसे लेकर वह फाटक के बाहर चला आया। दस बज रहे थे। कड़ाके की सर्दी थी। दोनों चुपचाप चलने लगे। शराबी की मौन सहानुभूति को उस छोटे से सरल हृदय ने स्वीकार कर लिया। वह चुप हो गया। अभी वह एक तंगगली पर रुका ही था कि बालक के फिर सिसकने की आहट लगी। वह झिड़क कर बोल उठा–‘अब क्यों रोता है रे छोकरे?’
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