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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


शराबी ने चौंककर देखा। वह कोई जान-पहचान का तो मालूम होता था, पर कौन है, ठीक-ठीक न जान सका।

उसने फिर कहा– ‘तुम्हीं से कह रहे हैं। सुनते हो, उठा ले जाओ अपनी सान धरने की कल, नहीं तो सड़क पर फेंक दूँगा। एक ही कोठरी जिसका मैं दो रुपये किराया देता हूँ, उसमें क्या मुझे अपना कुछ रखने के लिए नहीं है?’

‘ओहो! रामजी तुम हो, भाई मैं भूल गया था। तो चलो, आज ही उसे उठा लाता हूँ।’ कहते हुए शराबी ने सोचा-अच्छी रही, उसी को बेचकर कुछ दिनों तक काम चलेगा।

गोमती नहाकर, रामजी उसका साथी, पास ही अपने घर पर पहुँचा। शराबी को कल देते हुए उसने कहा –ले जाओ, किसी तरह मेरा इससे पिंड छूटे।

बहुत दिनों पर आज उसको कल ढोना पड़ा। किसी तरह अपनी कोठरी में पहुँचकर उसने देखा कि बालक चुपचाप बैठा है। बड़बड़ाते हुए उसने पूछा– ‘क्यों रे, तूने कुछ खा लिया कि नहीं?’

‘भर-पेट खा चुका हूँ, और वह देखो तुम्हारे लिए भी रख दिया है।’ कह कर उसने अपनी स्वाभाविक मधुर हँसी से उस रूखी कोठरी को तर कर दिया।

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