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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


‘ताई मारेगी।’

‘क्यों मारेगी?’

‘कहेगी, तू चाचा के घर क्यों गया था?

‘तेरी बहनों को भी मार पड़ती है?’

‘नहीं। उन्हें प्यार करती है।’

भोलानाथ की स्त्री के नेत्र भर आये। भोलानाथ बोले–जो मिठाई बची है, वह जेब में डाल ले।

सुखदयाल ने तृषित नेत्रों से मिठाई की ओर देखा और उत्तर दिया–न।

‘क्यों?’

‘ताई मारेगी और मिठाई छीन लेगी।’

‘पहले कभी मारा है?’

‘हाँ मारा है।’

‘कितनी बार मारा है?’

‘कई बार मारा है।’

‘किस तरह मारा है?’

‘चिमटे से मारा है।’

भोलानाथ के हृदय पर जैसे किसी नो हथौड़ा मार दिया। उन्होंने ठण्डी साँस भरी और चुप हो गये। सुखदयाल धीरे-धीरे अपने घर की ओर रवाना हुआ; परन्तु उसकी बातें ताई के कानों तक उससे पहले पहुँच चुकी थीं। उसके क्रोध की कोई थाह नहीं थी। जब रात्रि अधिक चली गई और गली-मुहल्ले की स्त्रियाँ अपने-अपने घर चली गईं, तो उसने सुखदयाल को पकड़कर कहा–क्यों बे कलमुँहे चाचा से क्या कहता था?

सुखदयाल का कलेजा काँप गया। डरते-डरते बोला–कुछ नहीं कहता था।

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