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गल्प समुच्चय (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8446
आईएसबीएन :978-1-61301-064

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गल्प-लेखन-कला की विशद रूप से व्याख्या करना हमारा तात्पर्य नहीं। संक्षिप्त रूप से गल्प एक कविता है


सारन्धा भाई पर जान देती थी। उसके मुँह से यह धिक्कार सुनकर अनिरुद्ध लज्जा और खेद से विकल हो गया। वह वीराग्नि जिस क्षण भर के लिए अनुराग ने दबा दिया था, फिर ज्वलन्त हो गई। वह उल्टे पाँव लौटा और यह कहकर बाहर चला गया कि ‘सारन्धा, तुमने मुझे सदैव के लिए सचेत कर दिया। यह बात मुझे न भूलेगी।’

अँधेरी रात थी। आकाश-मण्डल में तारों का प्रकाश बहुत धँधला था। अनिरुद्ध किले से बाहर निकला। पल भर में नदी के उस पार जा पहुँचा, और फिर अन्धकार में लुप्त हो गया। शीतला उसके पीछे-पीछे किले की दीवारों तक आई; मगर जब अनिरुद्ध छलाँग मारकर बाहर कूद पड़ा, तो वह विहरिणी एक चट्टान पर बैठकर रोने लगी।

इतने में सारन्धा भी वहीं आ पहुँची। शीतला ने नागिन की तरह बल खाकर कहा– मर्यादा इतनी प्यारी है?

सारन्धा-हाँ।

शीतला-अपना पति होता, तो हृदय में छिपा लेती।

सारन्धा-न छाती में छुरी चुभा देती।

शीतला ने ऐंठकर कहा–डोली में छिपाती फिरोगी मेरी बात गिरह में बाँध लो।

सारन्धा-जिस दिन ऐसा होगा, मैं भी अपना वचन पूरा कर दिखाऊँगी। इस घटना के तीन महीने पीछे अनिरुद्ध महरौना को जीत करके लौटा और साल-भर पीछे सारन्ध का विवाह ओरक्षा के राजा चम्पतराय से हो गया। मगर उस दिन की बातें दोनों महिलाओं के हृदय-स्थल में काँटे की तरह खटकती रहीं।

राजा चम्पतराय बड़े प्रतिभाशाली पुरुष थे। सारी बुंदेला जाति उनके नाम पर जान देती थी उनके प्रभुत्व को मानती थी। गद्दी पर बैठते ही उसने मुगल बादशाहों को कर देना बन्द कर दिया और अपने बाहुबल से राज्य-विस्तार करने लगा। मुसलमानों की सेनायें बार-बार उस पर हमले करती थीं; पर हारकर लौट जाती थीं।

यही समय था, जब अनिरुद्ध ने सारन्धा का चम्पतराय से विवाह कर दिया। सारन्धा ने मुँहमाँगी मुराद पाई। उसकी यह अभिलाषा कि मेरा पति बुंदेला जाति का कुलतिलक हो, पूरी हुई। यद्यपि राजा के रनिवास में पाँच रानियाँ थीं। मगर उन्हें शीघ्र ही मालूम हो गया कि वह देवी जो हृदय में पूजा करती है, सारन्धा है।

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