उपन्यास >> गोदान’ (उपन्यास) गोदान’ (उपन्यास)प्रेमचन्द
|
54 पाठक हैं |
‘गोदान’ प्रेमचन्द का सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपन्यास है। इसमें ग्रामीण समाज के अतिरिक्त नगरों के समाज और उनकी समस्याओं का उन्होंने बहुत मार्मिक चित्रण किया है।
गोबर ने देखा, जंगी पेड़ की आड़ में खड़ा झाँक रहा है। बोला–डरो मत जंगी भैया, मैं हूँ। राम-राम! आज ही आया हूँ। सोचा, चलूँ सबसे मिलता आऊँ, फिर न जाने कब आना हो! मैं तो भैया, तुम्हारे आसिरबाद से बड़े मजे में निकल गया। जिस राजा की नौकरी मैं हूँ, उन्होंने मुझसे कहा है कि एक-दो आदमी मिल जायँ तो लेते आना। चौकीदारी के लिए चाहिए। मैंने कहा, सरकार ऐसे आदमी दूँगा कि चाहे जान चली जाय, मैदान से हटनेवाले नहीं, इच्छा हो तो मेरे साथ चलो। अच्छी जगह है।
जंगी उसका ठाट-बाट देखकर रोब में आ गया। उसे कभी चमरौधे जूते भी मयस्सर न हुए थे। और गोबर चमाचम बूट पहने हुए था। साफ-सुथरी, धारीदार कमीज, सँवारे हुए बाल, पूरा बाबू साहब बना हुआ। फटेहाल गोबर और इस परिष्कृत गोबर में बड़ा अन्तर था। हिंसा-भाव कुछ तो यों ही समय के प्रभाव से शान्त हो गया था और बचा-खुचा अब शान्त हो गया। जुआड़ी था ही, उस पर गाँजे की लत। और घर में बड़ी मुश्किल से पैसे मिलते थे। मुँह में पानी भर आया। बोला–चलूँगा क्यों नहीं, यहाँ पड़ा-पड़ा मक्खी ही तो मार रहा हूँ। कै रुपए मिलेंगे?
गोबर ने बड़े आत्मविश्वास से कहा–इसकी कुछ चिन्ता न करो। सब कुछ अपने ही हाथ में है। जो चाहोगे, वह हो जायगा। हमने सोचा, जब घर में ही आदमी है, तो बाहर क्यों जायँ।
जंगी ने उत्सुकता से पूछा–काम क्या करना पड़ेगा?
‘काम चाहे चौकीदारी करो, चाहे तगादे पर जाओ। तगादे का काम सबसे अच्छा। असामी से गठ गये। आकर मालिक से कह दिया, घर पर है नहीं, चाहो तो रुपए आठ आने रोज बना सकते हो।’
‘रहने की जगह भी मिलती है?’
‘जगह की कौन कमी। पूरा महल पड़ा है। पानी का नल, बिजली। किसी बात की कमी नहीं है। कामता हैं कि कहीं गये हैं?’
‘दूध लेकर गये हैं। मुझे कोई बाजार नहीं जाने देता। कहते हैं, तुम तो गाँजा पी जाते हो। मैं अब बहुत कम पीता हूँ भैया, लेकिन दो पैसे रोज तो चाहिए ही। तुम कामता से कुछ न कहना। मैं तुम्हारे साथ चलूँगा।’
‘हाँ-हाँ, बेखटके चलो। होली के बाद।’
‘तो पक्की रही।’
|