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ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :268
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8459
आईएसबीएन :978-1-61301-068

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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…


उमा ने कहा–स्त्री-धन है तो क्या वह उसे लुटा देंगी। आखिर वह भी तो दादा ही की कमाई है।

‘किसी की कमाई हो। स्त्री-धन पर उनका पूरा अधिकार है ।’

‘यह क़ानूनी गोरखधन्धे हैं। बीस हज़ार में तो चार हिस्सेदार हों और दस हज़ार के गहने अम्माँ के पास रह जायँ। देख लेना, इन्हीं के बल पर वह कुमुद का विवाह मुरारी पंडित के घर करेंगी।’

उमानाथ इतनी बड़ी रक़म को इतनी आसानी से नहीं छोड़ सकता। वह कपट-नीति में कुशल है। कोई कौशल रचकर माता से सारे गहने ले लेगा। उस वक्त तक कुमुद के विवाह की चर्चा करके फूलमती को भड़काना उचित नहीं। कामतानाथ ने सिर हिलाकर कहा–भाई, मैं इन चालों को पसंद नहीं करता।

उमानाथ ने ख़िसिया कर कहा–गहने दस हजार से कम के न होंगे।

कामता अविचलित स्वर में बोले–कितने ही के हों, मैं अनीति में हाथ नहीं डालना चाहता।

‘तो आप अलग बैठिए। हाँ, बीच में भाँजी न मारियेगा।’

‘मैं अलग रहूँगा।’

‘और तुम सीता?’

‘अलग रहूँगा।’

लेकिन जब दयानाथ से यही प्रश्न किया गया, तो वह उमानाथ से सहयोग करने को तैयार हो गया। दस हज़ार में ढ़ाई हजार तो उसके होंगे। इतनी बड़ी रकम के लिए यदि कुछ कौशल भी करना पड़े तो क्षम्य है।

फूलमती रात को भोजन करके लेटी थी कि उमा और दया उसके पास जा कर बैठ गये। दोनों ऐसा मुँह बनाये हुए थे, मानों कोई भारी विपत्ति आ पड़ी है। फूलमती ने सशंक हो कर पूछा–तुम दोनों घबड़ाये हुए मालूम होते हो?

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