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ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :268
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8459
आईएसबीएन :978-1-61301-068

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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…


मगर टाइम टेबिल बना लेना एक बात है, उस पर अमल करना दूसरी बात। पहले ही दिन से उसकी अवहेलना शुरू हो जाती। मैदान की वह सुखद हरियाली, हवा के वह हलके हलके झोंके, फुटबाल की उछल कूद, कबड्डी के वह दाँव घात, वाली बाल की वह तेज़ी और फ़ुरती मुझे अज्ञात और अनिर्वाय रूप से खींच ले जाती और वहाँ जाते ही मैं सब कुछ भूल जाता। वह जानलेवा टाइम टेबिल वह आँखफोड़ पुस्तवकें, किसी की याद न रहती, और फिर भाई साहब को नसीहत और फजीहत का अवसर मिल जाता। मैं उनके साये से भागता, उनकी आँखों से दूर रहने की चेष्टा  करता, कमरे में इस तरह दबे पाँव आता कि उन्हेा खबर न हो! उनकी नज़र मेरी ओर उठी और मेरे प्राण निकले। हमेशा सिर पर एक नंगी तलवार सी लटकती मालूम होती। फिर भी जैसे मौत और विपत्तिर के बीच में भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार और घुड़कियाँ खाकर भी खेल-कूद का तिरस्काार न कर सकता।

सालाना इम्तेहान हुआ। भाई साहब फ़ेल हो गये, मैं पास हो गया और दरजे में प्रथम आया। मेरे और उनके बीच केवल दो साल का अन्तेर रह गया। जी में आया, भाई साहब को आडें हाथो लूँ–आपकी वह घोर तपस्यार कहाँ गयी? मुझे देखिए, मज़े से खेलता भी रहा और दरजे में अव्वेल भी हूँ। लेकिन वह कितने दुःखी और उदास थे कि मुझे उनसे दिल्लीे हमदर्दी हुई और उनके घाव पर नमक छिड़कने का विचार ही लज्जाेस्पजद जान पड़ा। हाँ, अब मुझे अपने ऊपर कुछ अभिमान हुआ और आत्माेभिमान भी बढ़ा। भाई साहब का वह रोब मुझ पर न रहा। आज़ादी से खेल-कूद में शरीक होने लगा। दिल मजबूत था। अगर उन्हों ने फिर मेरी फजीहत की, तो साफ़ कह दूँगा–आपने अपना खून जलाकर कौन-सा तीर मार लिया। मैं तो खेलते-कूदते दरजे में अव्वगल आ गया। ज़बान से यह हेकड़ी जताने का साहस न होने पर भी मेरे रंग-ढंग से साफ़ ज़ाहिर होता था कि भाई साहब का वह आंतक मुझ पर नहीं है। भाई साहब ने इसे भाँप लिया–उनकी सहज बुद्धि बड़ी तीव्र थी और एक दिन जब मैं भोर का सारा समय गुल्लीह-डंडे की भेंट करके ठीक भोजन के समय लौटा तो भाई साहब ने मानो तलवार खींच ली और मुझ पर टूट पड़े–देखता हूँ, इस साल पास हो गये और दरजे में अव्वपल आ गये, तो तुम्हेंब दिमाग़ हो गया है; मगर भाईजान, घमंड तो बड़ों-बड़ों का नहीं रहा, तुम्हाठरी क्याम हस्तीर है? इतिहास में रावण का हाल तो पढ़ा ही होगा। उसके चरित्र से तुमने कौन-सा उपदेश लिया? या यो ही पढ़ गये? महज़ इम्तसहान पास कर लेना कोई चीज नहीं, असल चीज़ है बुद्धि का विकास। जो कुछ पढो, उसका अभिप्राय समझो। रावण भूमंडल का स्वा मी था। ऐसे राजो को चक्रवर्ती कहते हैं।

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