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ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :268
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8459
आईएसबीएन :978-1-61301-068

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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…


आजकल अँगरेजों के राज्यय का विस्ता र बहुत बढ़ा हुआ है; पर इन्हेच चक्रवर्ती नहीं कह सकते। संसार में अनेकों राष्ट़्र  अँगरेजों का आधिपत्या स्वीहकार नहीं करते। बिलकुल स्वा।धीन हैं। रावण चक्रवर्ती राजा था। संसार के सभी महीप उसे कर देते थे। बड़े-बड़े देवता उसकी ग़ुलामी करते थे। आग और पानी के देवता भी उसके दास थे; मगर उसका अन्त क्याह हुआ, घमंड ने उसका नाम निशान तक मिटा दिया, कोई उसे एक चिल्लूै पानी देने वाला भी न बचा। आदमी जो कुकर्म चाहे करे, पर अभिमान न करे, इतराये नही। अभिमान किया, और दीन-दुनिया से गया। शैतान का हाल भी पढ़ा ही होगा। उसे यह अभिमान हुआ था कि ईश्व र का उससे बढ़कर सच्चाउ भक्ता कोई है ही नहीं। अन्त  में यह हुआ कि स्वुर्ग से नरक में ढकेल दिया गया। शाहेरूम ने भी एक बार अहंकार किया था। भीख माँग-माँग कर मर गया। तुमने तो अभी केवल एक दरजा पास किया है और अभी से तुम्हाुरा सिर फिर‍ गया, तब तो तुम आगे बढ़ चुके। यह समझ लो कि तुम अपनी मेहनत से नहीं पास हुए, अंधे के हाथ बटेर लग गयी। मगर बटेर केवल एक बार हाथ लग सकती है, बार-बार नहीं लग सकती। कभी-कभी गुल्लीम-डंडे में भी अन्धा-चोट निशाना पड़ जाता है। इससे कोई सफल खिलाड़ी नहीं हो जाता। सफल खिलाड़ी वह है, जिसका कोई निशाना खाली न जाय। मेरे फेल होने पर न जाओ। मेरे दरजे में आओगे, तो दाँतो पसीना आयगा। जब अलजबरा और जामेट्री के लोहे के चने चबाने पड़ेंगे, और इंगलिस्ता न का इतिहास पढ़ना पड़ेंगा! बादशाहों के नाम याद रखना आसान नहीं। आठ-आठ हेनरी हो गुजरे हैं। कौन-सा कांड किस हेनरी के समय हुआ, क्या- यह याद कर लेना आसान समझते हो? हेनरी सातवें की जगह, हेनरी आठवाँ लिखा और सब नम्बगर ग़ायब! सफ़ाचट। सिफ़र भी न मिलगा, सिफ़र भी! हो किस ख़याल में। दरजों तो जेम्सड हुए हैं, दरजनों विलियम, कोड़ियों चार्ल्सी! दिमाग़ चक्क।र खाने लगता है। आँधी रोग हो जाता है। इन अभागों को नाम भी न जुड़ते थे। एक ही नाम के पीछे दोयम, सेयम, चहारम, पंचम लगाते चले गये। मुझसे पूछते तो दस लाख नाम बता देता। और जामेट्री तो बस खुदा की पनाह! अ ब ज की जगह अ ज ब लिख दिया और सारे नम्बबर कट गये। कोई इन निर्दयी मुमतहिनों से नहीं पूछता कि आखिर अ ब ज और अ ज ब में क्या  फ़र्क है, और व्यीर्थ की बात के लिए क्यों  छात्रो का खून करते हो। दाल-भात-रोटी खायी या भात-दाल-रोटी खायी, इसमें क्याय रखा है, मगर इन परीक्षकों को क्याद परवाह! वह तो वही देखते हैं, जो पुस्तिक में लिखा है। चाहते हैं कि लड़के अक्षर-अक्षर रट डालें। और इसी रटन्त का नाम शिक्षा रख छोड़ा है और आखिर इन बे-सिर-पैर की बातो के पढ़ने से फायदा!

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