कहानी संग्रह >> ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह) ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…
इस अवसर पर मुझे यह बहुमूल्य अनुभव हुआ कि जो लोकसेवाभाव रखते हैं और जो स्वावर्थ-सिद्धि को जीवन का लक्ष्यव नहीं बनाते, उनके परिवार को आड़ देनेवालों की कमी नहीं रहती। यह कोई नियम नहीं है; क्योंकि मैंने ऐसे लोगों को भी देखा है, जिन्होंवने जीवन में बहुतों के साथ सलूक किये; पर उनके पीछे उनके बाल-बच्चेप की किसी ने बात तक न पूछी; लेकिन चाहे कुछ हो, देवनाथ के मित्रों ने प्रशंसनीय औदार्य से काम लिया और गोपा के निर्वाह के लिए स्था यी धन जमा करने का प्रस्ता व किया। दो-एक सज्जकन जो रँडुवे थे, उससे विवाह करने को तैयार थे; किन्तु गोपा ने भी उसी स्वाोभिमान का परिचय दिया, जो हमारी देवियों का जौहर है और इस प्रस्ताव को अस्वीऔकार कर दिया। मकान बहुत बड़ा था। उसका एक भाग किराये पर उठा दिया। इस तरह उसको ५॰ रु० महावार मिलने लगे। वह इतने में ही अपना निर्वाह कर लेगी। जो कुछ खर्च था, वह सुन्नी की जात से था। गोपा के लिए तो जीवन में अब कोई अनुराग ही न था।
इसके एक महीने बाद मुझे कारोबार के सिलसिले में विदेश जाना पड़ा और वहाँ मेरे अनुराग से कहीं अधिक–दो साल–लग गये। गोपा के पत्र बराबर जाते रहते थे, जिससे मालूम होता था, वे आराम से हैं, कोई चिन्ता की बात नहीं है। मुझे पीछे ज्ञात हुआ कि गोपा ने मुझे भी गैर समझा और वास्तेविक स्थिति छिपाती रही।
विदेश से लौटकर मैं सीधा दिल्लीं पहुँचा। द्वार पर पहुँचते ही मुझे रोना आ गया। मृत्यु की प्रतिध्वेनि-सी छायी हुई थी। जिस कमरे में मित्रों के जमघट रहते थे उनके द्वार बन्द थे, मकड़ियों ने चारों ओर जाले तान रखे थे। देवनाथ के साथ वह श्री भी लुप्तु हो गयी थी। पहली नज़र में तो मुझे तो ऐसा भ्रम हुआ कि देवनाथ द्वार पर खड़े मेरी ओर देखकर मुस्कीरा रहे हैं। मैं मिथ्याावादी नहीं हूँ और आत्माा की दैहिकता में मुझे संदेह है, लेकिन उस वक्तु एक बार मैं चौंक जरूर पड़ा। हृदय में एक कम्पतन-सा उठा; लेकिन दूसरी नज़र में प्रतिमा मिट चुकी थी। द्वार खुला। गोपा के सिवा खोलनेवाला ही कौन था। मैंने उसे देखकर दिल थाम लिया। उसे मेरे आने की सूचना थी और मेरे स्वाागत की प्रतिक्षा में उसने नयी साड़ी पहन ली थी और शायद बाल भी गुँथा लिए थे, पर इन दो वर्षों के समय ने उस पर जो आघात किये थे, उन्हेंभ क्याि करती? नारियों के जीवन में यह वह अवस्था है, जब रूप लावण्ये अपने पूरे विकास पर होता है, जब उसमें अल्हरड़पन, चंचलता और अभिमान की जगह आकर्षण, माधुर्य और रसिकता आ जाती है, लेकिन गोपा का यौवन बीत चुका था उसके मुख पर झुर्रियाँ और विषाद की रेखाएँ अंकित थीं, जिन्हें उसकी प्रयत्नेशील प्रसन्नयता भी न मिटा सकती थी। केशों पर सफेदी दौड़ चली थी और एक-एक अंग बूढ़ा हो रहा था।
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