कहानी संग्रह >> ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह) ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…
‘हां अच्छी तरह है।’
‘और केदारनाथ?’
‘वह भी अच्छीा तरह हैं।’
‘तो फिर माजरा क्याी है?’
‘कुछ तो नहीं।’
‘तुमने तार दिया और कहती हो–कुछ तो नहीं।’
‘दिल घबरा रहा था, इससे तुम्हें बुला लिया। सुन्नी को किसी तरह समझा कर यहाँ लाना है। मैं तो सब कुछ करके हार गयी।’
‘क्यात इधर कोई नई बात हो गयी?’
‘नयी तो नहीं है; लेकिन एक तरह से नयी ही समझो, केदार एक ऐक्ट्रेसस के साथ कहीं भाग गया। एक सप्ताैह से उसका कहीं पता नहीं है। सुन्नीा से कह गया है–जब तक तुम रहोगी घर में नहीं आऊँगा। सारा घर सुन्नीछ का शत्रु हो रहा है; लेकिन वह वहाँ से टलने का नाम नहीं लेती। सुना है केदार अपने बाप के दस्त खत बनाकर कई हज़ार रुपये बैंक से ले गया है।’
‘तुम सुन्नी से मिली थीं?’
‘हाँ, तीन दिन से बराबर जा रही हूँ।’
‘वह नहीं आना चाहती, तो रहने क्यों नहीं देतीं?’
‘वहाँ घुट-घुट कर मर जायगी।’
‘मैं उन्ही पैरों लाला मदारीलाल के घर चला। हालाँकि मैं जानता था कि सुन्नीस किसी तरह न आयगी; मगर वहाँ पहुँचा, तो देखा–कुहराम मचा हुआ है। मेरा कलेजा धक से रह गया। वहाँ तो अर्थी सज रही थी। मुहल्लेव के सैकड़ों आदमी जमा थे। घर में से ‘हाय! हाय!’ की क्रन्दन-ध्वैनि आ रही थी। यह सुन्नी का शव था।
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