कहानी संग्रह >> ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह) ग्राम्य जीवन की कहानियाँ (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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उपन्यासों की भाँति कहानियाँ भी कुछ घटना-प्रधान होती हैं, मगर…
शिवदास ने समझाया–बेटा, दैवगति से तो किसी का बस नहीं, रोने-धोने से हलाकानी के सिवा और क्याझ हाथ आयेगा? घर में भी तो बीसों काम हैं। कोई साधु-सन्त, आ जायँ, कोई पहुना ही आ पहुँचे, तो उनके सेवा-सत्कांर के लिए किसी को तो घर पर रहना ही पड़ेगा।
बहू ने बहुत से हीले किये, पर शिवदास ने एक न सुनी।
शिवदास के बाहर चले जाने पर रामप्याूरी ने कुंजी उठायी, तो उसे मन में अपूर्व गौरव और उत्तकरदायित्वर का अनुभव हुआ। ज़रा देर के लिए पतिवियोग का दुःख उसे भूल गया। उसकी छोटी बहन और देवर दोनों काम करने गये हुए थे। शिवदास बाहर था। घर बिलकुल खाली था। इस वक्तन वह निश्चिंत हो कर भंडारे को खोल सकती है। उसमें क्याु-क्या सामान है, क्यां-क्याम विभूति है, यह देखने के लिए उसका मन लालायित हो उठा। इस घर में वह कभी न आयी थी। जब कभी किसी को कुछ देना या किसी से कुछ लेना होता था, तभी शिवदास आ कर इस कोठरी को खोला करता था। फिर उसे बन्दल कर वह ताली अपनी कमर में रख लेता था। रामप्याारी कभी-कभी द्वार की दराजों से भीतर झाँकती थी, पर अँधेरे में कुछ न दिखाई देता। सारे घर के लिए वह कोठरी तिलिस्म या रहस्यप था, जिसके विषय में भॉंति-भॉंति की कल्प नाएँ होती रहती थीं। आज रामप्या री को वह रहस्यर खोलकर देखने का अवसर मिल गया। उसने बाहर का द्वार बन्द् कर दिया कि कोई उसे भंडार खोलते न देख ले, नहीं सोचेगा, बेजरूरत इसने क्योंक खोला, तब आ कर काँपते हुए हाथों से ताला खोला। उसकी छाती धड़क रही थी कि कोई द्वार न खटखटाने लगे। अन्दार पाँव रखा तो उसे कुछ उसी प्रकार का, लेकिन उससे कहीं तीव्र आनंद हुआ, जो उसे अपने गहने-कपड़े की पिटारी खोलने में होता था। मटकों में गुड़, शक्करर, गेहूँ, जौ आदि चीजें रखी हुई थीं। एक किनारे बड़े-बड़े बर्तन धरे थे, जो शादी-ब्यारह के अवसर पर निकाले जाते थे, या माँगे दिये जाते थे। एक आले पर मालगुजारी की रसीदें और लेन-देन के पुरजे बॅंधे हुए रखे थे। कोठरी में एक विभूति-सी छायी थी, मानो लक्ष्मीय अज्ञात रूप से विराज रही हो। उस विभूति की छाया में रामप्यासरी आध घंटे तक बैठी अपनी आत्माआ को तृप्तस करती रही। प्रतिक्षण उसके हृदय पर ममत्वस का नशा-सा छाया जा रहा था। जब वह उस कोठरी से निकली, तो उसके मन के संस्कापर बदल गये थे, मानो किसी ने उस पर मन्त्र डाल दिया हो।
उसी समय द्वार पर किसी ने आवाज़ दी। उसने तुरन्तप भंडारे का द्वार बन्द किया और जाकर सदर दरवाजा खोल दिया। देखा तो पड़ोसिन झुनिया खड़ी है और एक रूपया उधार माँग रही है।
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