कहानी संग्रह >> गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
रानी भान कुंवर के चले जाने के बाद राजा देवमल फिर अपने कमरे में आ बैठे, मगर चिन्तित और मन बिलकुल बुझा हुआ, मुर्दे के समान। रानी की सख़्त बातों से दिल के सबसे नाजुक हिस्सों में टीस और जलन हो रही थी। पहले तो वह अपने ऊपर झुँझलाए कि मैंने उसकी बातों को क्यों इतने धीरज से सुना मगर जब गुस्से की आग धीमी हुई और दिमाग़ का सन्तुलन फिर असली हालत पर आया तो उन घटनाओं पर अपने मन में विचार करने लगे। न्यायप्रिय स्वभाव के लोगों के लिए क्रोध एक चेतावनी होती है, जिससे उन्हें अपने कथन और आचार की अच्छाई और बुराई को जाँचने और आगे के लिए सावधान हो जाने का मौक़ा मिलता है। इस कड़वी दवा से अकसर अनुभव को शक्ति, दृष्टि को व्यापकता और चिन्तन को सजगता प्राप्त होती है। राजा सोचने लगे—बेशक रियासत के अन्दरूनी हालात के लिहाज से यह सब नाच-रंग बेमौक़ा है। बेशक वह रिआया के साथ अपना फ़र्ज नहीं अदा कर रहे थे। वह इन ख़र्चों और इस नैतिक धब्बे को मिटाने के लिए तैयार थे, मगर इस तरह कि नुक्ताचीनी करने वाली आँखें उसमें कुछ और मतलब न निकाल सकें। रियासत की शान कायम रहे। इतना इन्दरमल से उन्होंने साफ़ कह दिया था कि अगर इतने पर भी अपनी ज़िद से बाज नहीं आता तो यह उसकी ढिठाई है। हर एक मुमकिन पहलू से ग़ौर करने पर राजा साहब के इस फ़ैसले में जरा भी फेर-फार न हुआ। कुंवर का यों ग़ायब हो जाना ज़रूर चिन्ता की बात है और रियासत के लिए उसके ख़तरनाक नतीजे हो सकते हैं मगर वह अपने आप को इन नतीजों की जिम्मदारियों से बिलकुल बरी समझते थे। वह यह मानते थे कि इन्दरमल के चले जाने के बाद उनका यह महफ़िलें जमाना बेमौक़ा और दूसरों को भड़काने वाला था मगर इसका कुंवर के आख़िरी फैसले पर क्या असर पड़ सकता है? कुंवर ऐसा नादान, नातजुर्बेकार और बुजदिल तो नहीं है कि आत्महत्या कर लें, हाँ, वह दो-चार दिन इधर-उधर आवारा घूमेगा और अगर ईश्वर ने कुछ भी विवेक उसे दिया तो वह दुखी और लज्जित होकर जरूर चला आएगा। मैं खुद उसे ढूँढ़ निकालूँगा। वह ऐसा कठोर नहीं है कि अपने बूढ़े बाप की मजबूरी पर कुछ भी ध्यान न दे।
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