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गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461
आईएसबीएन :978-1-61301-158

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ

त्रिया चरित्र

सेठ लगनदास जी के जीवन की बगिया फलहीन थी। कोई ऐसा मानवीय, आध्यात्मिक या चिकित्सात्मक प्रयत्न न था जो उन्होंने न किया हो। यों शादी में एक पत्नीव्रत के क़ायल थे मगर ज़रूरत और आग्रह से विवश होकर एक-दो नहीं पाँच शादियाँ कीं, यहाँ तक कि उम्र के चालीस साल गुज़र गए और अँधेरे घर में उजाला न हुआ। बेचारे बहुत रंजीदा रहते। यह धन-संपत्ति, यह ठाट-बाट, यह वैभव और यह ऐश्वर्य क्या होंगे। मेरे बाद इनका क्या हाल होगा, कौन इनको भोगेगा। यह ख़्याल बहुत अफ़सोसनाक था। आख़िर यह सलाह हुई कि किसी लड़के को गोद लेना चाहिए। मगर यह मसला पारिवारिक झगड़ों के कारण कई सालों तक स्थगित रहा। जब सेठ जी ने देखा कि बीवियों में अब तक बदस्तूर कशमकश हो रही है तो उन्होंने नैतिक साहस से काम लिया और एक होनहार अनाथ लड़के को गोद ले लिया। उसका नाम रखा गया मगनदास। उसकी उम्र पाँच-छः साल से ज़्यादा न थी। बला का ज़हीन और तमीज़दार। मगर औरतें सब कुछ कर सकती हैं, दूसरे के बच्चे को अपना नहीं समझ सकतीं। यहाँ तो पाँच औरतों का साझा था। अगर एक उसे प्यार करती तो बाक़ी चार औरतों का फ़र्ज था कि उससे नफ़रत करें। हाँ, सेठ जी उसके साथ बिलकुल अपने लड़के की-सी मुहब्बत करते थे। पढ़ाने को मास्टर रक्खे, सवारी के लिए घोड़े। रईसी ख़्याल के आदमी थे। राग-रंग का सामान भी मुहैया था। गाना सीखने का लड़के ने शौक किया तो उसका भी इंतज़ाम हो गया। ग़रज जब मगनदास जवानी पर पहुँचा तो रईसाना दिलचस्पियों में उसे कमाल हासिल था। उसका गाना सुनकर उस्ताद लोग कानों पर हाथ रखते। शहसवार ऐसा कि दौड़ते हुए घोड़े पर सवार हो जाता। डील-डौल, शक्ल सूरत में उसका-सा अलबेला जवान दिल्ली में कम होगा। शादी का मसला पेश हुआ। नागपुर के करोड़पति सेठ मक्खनलाल बहुत लहराये हुए थे। उनकी लड़की से शादी हो गई। धूमधाम का जिक्र किया जाए तो क़िस्सा वियोग की रात से भी लम्बा हो जाए। मक्खनलाल का उसी शादी में दीवाला निकल गया। इस वक़्त मगनदास से ज़्यादा ईर्ष्या के योग्य आदमी और कौन होगा? उसकी ज़िन्दगी की बहार उमंगों पर भी और मुरादों के फूल अपनी शबनमी ताज़गी में खिल-खिलकर हुस्न और ताज़गी का समाँ दिखा रहे थे। मगर तक़दीर की देवी कुछ और ही सामान कर रही थी। वह सैर-सपाटे के इरादे से जापान गया हुआ था कि दिल्ली से ख़बर आई कि ईश्वर ने तुम्हें एक भाई दिया है। मुझे इतनी खुशी है कि ज़्यादा अर्से तक जिन्दा न रह सकूँ। तुम बहुत जल्द लौट आओ।

मगनदास के हाथ से तार का कागज छूट गया और सर में ऐसा चक्कर आया कि जैसे किसी ऊँचाई से गिर पड़ा है।

मगनदास का किताबी ज्ञान बहुत कम था। मगर स्वभाव की सज्जनता से वह खाली न था। हाथों की उदारता ने जो समृद्धि का वरदान है, हृदय को भी उदार बना दिया था। उसे घटनाओं की इस कायापलट से दुख तो ज़रूर हुआ, आख़िर इन्सान ही था, मगर उसने धीरज से काम लिया और एक आशा और भय की मिली-जुली हालत में देश को रवाना हुआ।

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