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गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461
आईएसबीएन :978-1-61301-158

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


महाराज रनजीतसिंह समझ गये कि औरत की हिम्मत दगा दे गयी। वह बड़ी तेज़ी से लपके और तेग़े को हाथ में उठा लिया। यकायक दाहिना हाथ पागलों जैसे जोश के साथ ऊपर को उठा। वह एक बार जोर से बोले ‘वाह गुरू की जय’ और करीब था कि तलवार सीने में डूब जाय। बिजली कौंधकर बादल के सीने में घुसने ही वाली थी कि वृन्दा एक चीख़ मारकर उठी और राजा के ऊपर उठे हुए हाथ को अपने दोनों हाथों से मजबूत पकड़ लिया। रनजीतसिंह ने झटका देकर हाथ छुड़ाना चाहा मगर कमज़ोर औरत ने उनके हाथ को इस तरह जकड़ा था जैसे मुहब्बत दिल को जकड़ लेती है। बेबस होकर बोले—श्यामा, इन्साफ़ को अपनी प्यास बुझाने दो।

श्यामा ने कहा—महाराज, उसकी प्यास बुझ गयी। यह तलवार इसकी गवाह है।

महाराज ने तेग़े को देखा। इस वक़्त उसमें दूज के चाँद की चमक थी। सत्य और न्याय के चमकते हुए सूरज ने उस चाँद को आलोकित कर दिया।

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