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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464
आईएसबीएन :978-1-61301-159

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


उसकी तुलिया ने उसे बुलाया है। उस कृतघ्नी, अधम, नीच, हत्यारे को बुलाया है कि आकर मुझे देख जाओ, कौन जाने बचूँ कि न बचूं। तू अगर न बचेगी तुलिया तो मैं भी न बचूँगा, हाय, न बचूँगा!! दीवार से सिर फोड़कर मर जाऊँगा। फिर मेरी और तेरी चिता एक साथ बनेगी, दोनों के जनाजे एक साथ निकलेंगे।

उसने क़दम और तेज़ किये। आज वह अपना सब कुछ तुलिया के कदमों पर रख देगा। तुलिया उसे बेवफ़ा समझती है। आज वह दिखायेगा, वफ़ा किसे कहते हैं। जीवन में अगर उसने वफ़ा न की तो मरने के बाद करेगा। इस चार दिन की ज़िन्दगी में जो कुछ न कर सका वह अनन्त युगों तक करता रहेगा। उसका प्रेम कहानी बनकर घर-घर फैल जायगा।

मन में शंका हुई, तुम अपने प्राणों का मोह छोड़ सकोगे? उसने जोर से छाती पीटी और चिल्ला उठा– प्राणों का मोह किसके लिए? और प्राण भी तो वही है, जो बीमार है। देखूँ मौत कैसे प्राण ले जाती है, और देह को छोड़ देती है।

उसने धड़कते हुए दिल और थरथराते हुए पाँवों से तुलिया के घर में क़दम रक्खा। तुलिया अपनी खाट पर एक चादर ओढ़े सिमटी पड़ी थी, और लालटेन के अन्धे प्रकाश में उसका पीला मुख मानो मौत की गोद में विश्राम कर रहा था।

उसने उसके चरणों पर सिर रख दिया और आँसुओं में डूबी हुई आवाज़ से बोला– तूला, यह अभागा तुम्हारे चरणों पर पड़ा हुआ है। क्या आँखें न खोलोगी?

तुलिया ने आँखें खोल दीं और उसकी ओर करुण दृष्टि डालकर कराहती हुई बोली– तुम हो गिरधर सिंह, तुम आ गये? अब मैं आराम से मरूँगी। तुम्हें एक बार देखने के लिए जी बहुत बेचैन था। मेरा कहा– सुना माफ कर देना और मेरे लिए रोना मत। इस मिट्टी की देह में क्या रक्खा है गिरधर! वह तो मिट्टी में मिल जायगी। लेकिन मैं कभी तुम्हारा साथ न छोडूँगी। परछाईं की तरह नित्य तुम्हारे साथ रहूँगी। तुम मुझे देख न सकोगे, मेरी बातें सुन न सकोगे, लेकिन तुलिया आठों पहर सोते-जागते तुम्हारे साथ रहेगी। मेरे लिए अपने को बदनाम मत करना गिरधर! कभी किसी के सामने मेरा नाम ज़बान पर न लाना। हाँ, एक बार मेरी चिता पर पानी के छींटे मार देना। इससे मेरे हृदय की ज्वाला शान्त हो जायगी।

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