कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह) गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ
बिल्कुल वही भाव जो मेरे दिल में थे मगर उसकी ज़बान से निकलकर कितने असरदार और कितने आँख खोलनेवाले हो गये। मैंने कहा– आप ठीक कहती हैं। सचमुच यह हमारी कमजोरी है।
– आपको इस टीम में शरीक न होना चाहिए था।
– मैं मजबूर था।
इस सुन्दरी का नाम मिस हेलेन मुकर्जी है। अभी इंगलैण्ड से आ रही है। यही क्रिकेट मैच देखने के लिए बम्बई उतर गयी थी। इंगलैंड में उसने डाक्टरी की शिक्षा प्राप्त की है और जनता की सेवा उसके जीवन का लक्ष्य है। वहाँ उसने एक अख़बार में मेरी तस्वीर देखी थी और मेरा जिक्र भी पढ़ा था तब से वह मेरे लिए अच्छा ख्याल रखती है। यहाँ मुझे खेलते देखकर वह और भी प्रभावित हुई। उसका इरादा है कि हिन्दुस्तान की एक नई टीम तैयार की जाय और उसमें वही लोग लिए जाये जो राष्ट्र का प्रतिनिधत्व करने के अधिकारी हैं। उसका प्रस्ताव है कि मैं इस टीम का कप्तान बनाया जाऊँ। इसी इरादे से वह सारे हिन्दुस्तान का दौरा करना चाहती है। उसके स्वर्गीय पिता डा० एन० मुकर्जी ने बहुत काफ़ी सम्पत्ति छोड़ी है और वह उसकी सम्पूर्ण उत्तराधिकारिणी है। उसके प्रस्ताव सुनकर मेरा सर आसमान में उड़ने लगा। मेरी ज़िन्दगी का सुनहरा सपना इतने अप्रत्याशित ढंग से वास्तविकता का रूप ले सकेगा, यह कौन सोच सकता था। अलौकिक शक्ति में मेरा विश्वास नहीं मगर आज मेरे शरीर का रोआ-रोआ कृतज्ञता और भक्ति भावना से भरा हुआ था। मैंने उचित और विन्रम शब्दों में मिस हेलेन को धन्यवाद दिया।
गाड़ी की घण्टी हुई। मिस मुकर्जी ने फ़र्स्ट क्लास के दो टिकट मँगवाए। मैं विरोध न कर सका। उसने मेरा लगेज उठवाया, मेरा हैट खुद उठा लिया और बेधड़क एक कमरे में जा बैठी और मुझे भी अंदर बुला लिया। उसका खानसामा तीसरे दर्जे में बैठा। मेरी क्रिया-शक्ति जैसे खो गयी थी। मैं भगवान् जाने क्यों इन सब मामलों में उसे अगुवई करने देता था जो पुरुष होने के नाते मेरे अधिकार की चीज़ थी। शायद उसके रूप, उसकी बौद्धिक गरिमा, उसकी उदारता ने मुझ पर रोब डाल दिया था कि जैसे उसने कामरूप की जादूगरनियों की तरह मुझे भेड़ बना लिया हो और मेरी अपनी इच्छा-शक्ति लुप्त हो गयी हो। इतनी ही देर में मेरा अस्तित्व उसकी इच्छा में खो गया था। मेरे स्वाभिमान की यह माँग थी कि मैं उसे अपने लिए फ़र्स्ट क्लास का टिकट न मँगवाने देता और तीसरे ही दर्जे में आराम से बैठता और अगर पहले दर्जे में बैठना था तो इतनी ही उदारता से दोनों के लिए खुद पहले दर्जे का टिकट लाता, लेकिन अभी तो मेरी क्रिया– शक्ति लुप्त हो गयी थी।
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