लोगों की राय

कहानी संग्रह >> गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464
आईएसबीएन :978-1-61301-159

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

325 पाठक हैं

प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


उसने शरारत से कहा– इसीलिए कि आप मेरे काबू से बाहर न हो जायँ। मेरे लिए इससे ज़्यादा खुशी की बात क्या होती कि आपके आतिथ्य सत्कार का आनन्द उठाऊँ लेकिन प्रेम ईर्ष्यालु होता है, यह आपको मालूम है। वहाँ आपके इष्ट मित्र आपके वक़्त का बड़ा हिस्सा लेंगे,आपको मुझसे बात करने का वक़्त ही न मिलेगा और मर्द आम तौर पर कितने बेमुरब्बत और जल्द भूल जाने वाले होते हैं इसका मुझे अनुभव हो चुका है। मैं तुम्हें एक क्षण के लिए भी अलग नहीं छोड़ सकती। मुझे अपने सामने देखकर तुम मुझे भूलना भी चाहो तो नहीं भूल सकते।

मुझे अपनी इस खुशनसीबी पर हैरत ही नहीं, बल्कि ऐसा लगने लगा कि जैसे सपना देख रहा हूँ। जिस सुन्दरी की एक नज़र पर मैं अपने को कुर्बान कर देता वह इस तरह मुझसे मुहब्बत का इजहार करे। मेरा तो जी चाहता था कि इसी बात पर उनके कदमों को पकड़ कर सीने से लगा लूँ और आँसुओं से तर कर दूँ।

होटल में पहुँचे। मेरा कमरा अलग था। खाना हमने साथ खाया और थोड़ी देर तक वहीं हरी-हरी घास पर टहलते रहे। खिलाड़ियों को कैसे चुना जाय, यही सवाल था। मेरा जी तो यही चाहता था कि सारी रात उसके साथ टहलता रहूँ लेकिन उसने कहा– आप अब आराम करें, सुबह बहुत काम है। मैं अपने कमरे में जाकर लेट रहा मगर सारी रात नींद नहीं आयी। हेलेन का मन अभी तक मेरी आँखों से छिपा हुआ था, हर क्षण वह मेरे लिए पहेली होती जा रही है।

१२ जनवरी– आज दिन-भर लखनऊ के क्रिकेटरों का जमाव रहा। हेलेन दीपक थी और पतिंगे उसके गिर्द मंडरा रहे थे। यहाँ से मेरे अलावा दो लोगों का खेल हेलेन को बहुत पसन्द आया– बृजेन्द्र और सादिक। हेलेन उन्हें आल इंडिया टीम में रखना चाहती थी। इसमें कोई शक नहीं कि दोनों इस फ़न के उस्ताद हैं लेकिन उन्होंने जिस तरह शुरुआत की है उससे तो यही मालूम होता है कि वह क्रिकेट खेलने नहीं अपनी क़िस्मत की बाजी खेलने आये हैं। हेलने किस मिजाज़ की औरत है, यह समझना मुश्किल है। बृजेन्द्र मुझसे ज़्यादा सुन्दर है, यह मैं भी स्वीकार करता हूँ, रहन-सहन से पूरा साहब है। लेकिन पक्का शोहदा, लोफ़र। मैं नहीं चाहता कि हेलेन उससे किसी तरह का सम्बन्ध रक्खे। अदब तो उसे छू नहीं गया। बदज़बान परले सिरे का, बेहूदा गन्दे मज़ाक, बातचीत का ढंग नहीं और मौक़े-महल की समझ नहीं। कभी-कभी हेलेन से ऐसे मतलब-भरे इशारे कर जाता है कि मैं शर्म से सिर झुका लेता हूँ लेकिन हेलेन को शायद उसका बाजारूपन, उसका छिछोरापन महसूस नहीं होता। नहीं, वह शायद उसके गन्दे इशारों का मज़ा लेती है। मैंने कभी उसके माथे पर शिकन नहीं देखी। यह मैं नहीं कहता कि वह हंसमुखपन कोइ बुरी चीज़ है, न जिन्दादिली का मैं दुश्मन हूँ लेकिन एक लेडी के साथ तो अदब और क़ायदे का लिहाज़ रखना ही चाहिए।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book