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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


इस लैला-मंज़िल में कई भिक्षुक रहते थे। टूटे-फूटे प्रासादों को बड़े लोग कलंक समझकर जब परित्याग कर देते हैं तो कंगालों के भाग्य खुलते हैं। धनिक का बालक जितनी ही अधिक संख्या में अपनी पाठ्य-पुस्तकें पुरानी करता है उतना ही दरिद्र विद्यार्थियों को लाभ होता है।

बड़ी देर तक मैं बाहर खड़ा रहा। झुरही निकली नहीं मैं उसकी कोठरी में घुसा। एक कोने में बैठी वह कुछ बड़बड़ा रही थी। निकट ही रोटियों के बासी टुकड़े पड़े थे। मैंने कई बार ‘झुरही’ ‘झुरही’ कहा। उसने मुझे देखा और नेत्र नीचे कर लिये। फिर बड़बड़ाने लगी। वह जो कुछ बक रही थी, वह न कोई भाषा थी और न बोली। मैं समझ गया कि झुरही मुझे पहचान न सकी। उसकी विक्षिप्तता सीमा तक पहुँच गयी है। कुछ दुखी, कुछ शोकार्त होकर मैं वहाँ से चल दिया।

लखनऊ में मैं मुंशी राजाराम मुंसिफ के यहाँ ठहरा था। उनका मुझसे पुराना परिचय था। मुझे अन्यमनस्क देखकर वह हँसी उड़ाने लगे। मुझे सकही की कुछ चरचा करनी पड़ी और पूरा वृत्तांत सायंकाल के लिए स्थागित कर दिया गया। शाम भी आयी। प्रसंग छिड़ा। मैंने उसकी कथा आरम्भ की–
‘तुम्हें यह तो मालूम ही है कि कानपुर में मेरे घर के आस-पास दराना होता है और तेली रहते हैं। इन तेलियों में अधीन नाम का एक प्रसिद्ध धनिक तेली रहता था। मुनिया नाम की उसकी एक सुंदर कन्या थी। वह चौथी कक्षा तक पढ़ी थी। अधीन बड़ा सुधारक था, अतएव वह अपनी कन्या का किसी अच्छे घर में विवाह करना चाहता था। मुनिया केले की भाँति कोमल, किसलय की भाँति सुकुमार और फूल की भाँति सुगंधित थी। अधीन के कुछ निजी विचार कन्या के विवाह के सम्बन्ध में थे। उसने उन्हें किसी तर्क अथवा विवेक पर स्थिर न किया था। वह पढ़ा-लिखा भी कम था। लक्ष्मी की एकांगी उपासना के कारण सरस्वती की आराधना का उसे बिलकुल अवकाश न था। उसे जो कुछ भी व्यावहारिक कुशलता थी, वह सत्संग के कारण। उसके सिद्धांत सामाजिक रूढ़ियों से प्रस्तुत केवल परिवर्तन मात्र था। जब तेलियों में अच्छा वर न मिला तो इस सोलह वर्ष की कन्या को अधीन ने छत्तीस वर्ष के तेली जमींदार के साथ ब्याह दिया। इस जमींदार का नाम विनोद था। थोड़ा-बहुत पढ़ा भी था।

हृदय में स्नेह था और भावनाओं में नियंत्रण। सूतनपुरवा में इसकी मढ़ी थी। पुराने जातीय संस्कार इसके घर से उतने बहिष्कृत न थे, जितने अधीन के यहाँ से।

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