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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


सुंदर नव-वधू के रूप में मुनिया सूतनपुरवा आयी। अनुपम लावण्य था। पति के लिए अनुपम अनुराग था। विनोद कुछ ढलता हुआ युवा परंतु सुदृढ़ प्रेमी था। मुनिया जब उसे पहली रात्रि को मिली तो उसने एक डिब्बी से सिंदूर निकालकर तर्जनी से भौंहों के बीच में एक बिंदु रख दिया आकृति जगमगा उठी। मुनिया पति को देख रही थी विनोद ने फिर डिबिया के शीशे को उसके समक्ष कर दिया। झिलमिले प्रकाश में मुनिया के सामने कुंकुम बिंदु दिखायी दिया। विनोद का हाथ कांप गया। डिब्बी गिर गयी, शीशा फूट गया। मुनिया ने झट उसे उठाकर बंद करके अपने निकट रख लिया।’

राजाराम बड़ी अधीरता से झुरही का वृत्तांत सुन रहे थे। कथामाला का आगामी पृष्ठ आर्द्र था, अतएव उँगलियाँ फिसल गयीं। वाणी कुछ ठिठकी और मैं सहसा रुक गया। ‘हाँ, तो क्या हुआ?’ राजाराम ने कहा।

मैंने साहसपूर्वक फिर कहना आरम्भ किया–‘इतने ही क्षणिक साक्षात् से इस दम्पति में अपार प्रेम दौड़ गया। मुनिया के नेत्र हँसते थे। विनोद ने मुनिया की ठोढ़ी को हाथ में पकड़ा। कपोलों पर सुंदर रंगों का आना-जाना आरम्भ हो गया, प्रेम और लज्जा बारी-बारी दिखायी देने लगे। आधी स्वीकृति में आधी अस्वीकृति उलझी हुई थी।

‘नीचे बंदूक का शब्द सुनायी दिया। श्रृंगाररस के स्वप्न को तोड़कर दंपति खड़े हो गये, तुरंत धड़ाधड़ के शब्द ने घर को आक्रांत कर लिया। ‘डाकू! डाकू!!’ – यह शब्द सुनायी दिया। विनोद ने घबराकर किवाड़ खोल दिये। मुनिया सिकुड़कर बैठ गयी। डाके का घमासान कई घंटे रहा। विनोद ने लक्ष्मी की रक्षा में प्राण खोये। मुनिया के आभूषण शीघ्रता से न उतर सके। हनुमान पर्वत समेत संजीवनी बूटी उठा ले गये। श्रृंगार पर करुणा का रस पुत गया।’

राजाराम के आँसू छलछा आये। मेरा भी कंठ रुँध गया। ‘बड़ी कारुणिक गाथा है, राजाराम ने साँस खींचकर कहा, ‘फिर क्या हुआ? मुनिया सकही कैसे हो गयी?’

मैंने कथा फिर आरंम्भ की। राजाराम ध्यान से सुनने लगे।

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