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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


यह कहकर उन्होंने एक अँगूठी दूर से दिखा दी।

‘समझ गयी! आप अंदर तशरीफ लाइए!’

रूपा ने एक दासी को अपने स्थान पर बैठाकर अजनबी के साथ दूकान के भीतरी कक्ष में प्रवेश किया।

दोनों व्यक्तियों में क्या बातें हुईं, यह तो हम नहीं जानते, मगर उसके ठीक तीन घंटे बाद दो व्यक्ति काला लबादा ओढ़े दूकान से निकले और किनारे लगी हुई पालकी में बैठ गये। पालकी धीरे-धीरे उसी भूतों वाली मस्जिद में पहुँची। उसी प्रकार मौलवी ने कब्र का पत्थर हटाया और एक मूर्ति ने कब्र के तहखाने में प्रवेश किया। दूसरे व्यक्ति ने एकाएक मौलवी को पटककर मुश्कें बाँध ली और एक संकेत किया। क्षण-भर में ५० सुसज्जित काली-काली मूर्तियाँ आ खड़ी हुईं और बिना एक शब्द मुँह से निकाले चुपचाप कब्र के अंदर उतर गयीं।

अब फिर चलिए अनंगदेव के उसी रंग मन्दिर में। सुख-साधनों से भरपूर वही यह कक्ष आज सजावट खतम कर गया था। सहसा उल्कापात की तरह रंगीन हंडियाँ, बिल्लौरी फ़ानूस और हज़ारा झाड़ सब जल रहे थे। तत्परता से, किंतु नीरव बाँदियाँ और गुलाम दौड़-धूप कर रहे थे। अनगिनत रमणियाँ अपने मदभरे होठों की प्यालियों में भाव की मदिरा उँडेल रही थी। उन सुरीले रागों की बौछारों में बैठे बादशाह वाजिदअली शाह सराबोर हो रहे थे। उस गायनोन्माद में मालूम होता था, कमरे में जड़ पदार्थ भी मतवाले होकर नाच उठेंगे। नाचने वालियों के ठुमके और नूपुर की ध्वनि सोते हुए यौवन से ठोकर मार कर कहती थी–‘उठ-उठ, ओ मतवाले उठ!’ उन नर्तकियों के बढ़िया चिकनदोजी के सुवासित दुपटों से निकली हुई सुंगध उनके नृत्यवेग से विचलित वायु में साथ घुल-मिलकर गदर मचा रही थी। पर सामने का सुनहरा फब्बारा, जो सामने स्थिर ताल पर बीस हाथ ऊपर फेंककर रंगीन जलविंदु-रश्मियों से हाथापाई कर रहा था, देखकर कलेजा बिना उछले कैसे रह सकता था!

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