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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


 

सम्राट का स्वत्व

श्री राय कृष्णदास

[ आप का जन्म स्थान काशी है। आप ललित-कलाओं के प्रेमी और मर्मज्ञ हैं। इस बात का ज्वंलत उदाहरण है–काशी का भारत-कला भवन।
आप भावुक कवि हैं, गद्य–काव्य लेखक हैं, साथ ही उत्कृष्ट कहानी लेखक भी हैं। आपकी रचनाओं में दार्शनिक विचारों का पुट रहता है। आपकी कहानियाँ भाव-प्रधान होती हैं। भाषा संस्कृतगर्भित रहती है, पर व्यावहारिक भाषा का भी जहाँ-तहाँ बड़ा सुंदर प्रयोग मिलता है।
आपकी मुख्य रचनाएँ ये हैं–
कविता–भावुक।
गल्प-संग्रह–अनाख्या, सुधांशु।
गद्य काव्य–साधना, छायापथ, प्रदाल, संलाप।]

‘एक वह और एक मैं! किंतु मेरा कुछ भी नहीं! इस जीवन में कोई पद नहीं! वह समस्त साम्राज्य पर निष्कंटक राज्य करे और मुझे एक-एक कौड़ी के लिए उसका मुँह देखना पड़े! जिस कोख में उसने नौ महीने बिताये हैं, मैं भी उसी कोख से पैदा हुआ हूँ। जिस स्तन ने शैशव में उसका पालन किया, उसी स्नेह का मैं भी पूर्ण अधिकारी था। पिता की जिस गोद में वह बैठकर खेला है, मैंने भी उसी गोद में ऊधम मचाया है। हम दोनों एक ही माता-पिता के समान स्नेह और वात्सल्य के भागी रहे हैं। हम लोगों की बाल्यावस्था बराबरी के खेलकूद और नटखटी में बीती है। हम लोगों ने एक ही साथ गुरु के यहाँ एक ही पाठ पढ़ा और याद किया। एक के दोष को दूसरे ने छिपाया। एक के लिए दूसरे ने मार खायी। संग में जंगल-जंगल शिकार के पीछे मारे-मारे फिरे। भूख लगने पर एक कौर में से आधा मैंने खाया, आधा उसने। तब किसी बात का अंतर न था–एक प्राण दो शरीर थे।

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