कहानी संग्रह >> हिन्दी की आदर्श कहानियाँ हिन्दी की आदर्श कहानियाँप्रेमचन्द
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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ
उसने उस नवमुण्डित लड़के के कान की बाली की ओर इशारा करके कहा–कुछ व्यंग से, कुछ अनुभवी के अभिमान से।
सब लड़के निकट पहुँचकर माधो के कानों की समीक्षा करने लगे। कानों की लुरकी में पीतल की छोटी बाली छेदकर पहनायी गयी थी। छेदन-क्रिया अभी दो ही दिन पूर्व हुई थी, इसी से कान सूजे हुए थे; और बालियों की जड़ में रुधिर के सूखे हुए चिह्न वर्तमान थे। परीक्षा करते-करते एक चिलबिले बालक ने उसे छू दिया। माधो ‘सी’ करके हट गया। उसकी आँखें सजल हो गयीं। लड़का अपनी धृष्टता पर लज्जित और भयभीत हो गया। उसके साथी भी आशंकित हो चुप हो गये। सौभाग्यशाली सम्पन्न घर के लड़के की पीड़ा का अनुभव गरीब साथी अवश्य करते हैं। माधो चुपचाप अपने कानों की बात सोच रहा था और उनकी पीड़ा की मात्रा से मुनमुन के कष्ट की मात्रा का अन्दाजा लगाता था।
वह सोचता था, ‘मेरे कान तो जरा छेदे गये हैं; पर उस बेचारे का तो कान थोड़ा-सा काट ही लिया गया। कान काटने पर, कान छेदने से दर्द जरूर कुछ अधिक होता होगा।’ यह उसके बाल-मस्तिष्क की तर्क-शक्ति ने निश्चय किया। वह मुनमुन के प्रति स्नेह और सहानुभूति के भाव से भर गया। उसे इच्छा हुई, मुनमुन को पकड़कर प्यार करने और उसके कान की परीक्षा करने की! मुनमुन अपनी माँ के थन में मुँह मारता हुआ, अपनी छोटी दुम हिलाता हुआ, तन्मयता से दूध पी रहा था। उसकी माँ जुगाली करती हुई, कभी-कभी रुककर प्रेम और सन्तोष भरी दृष्टि से अपने बच्चे को देख लेती–सूंघ लेती थी। माधो ने सोचा–‘इस समय मुनमुन को पकड़ने का अच्छा अवसर है।’
उसने अपनी इच्छा अपने साथियों से प्रकट की। बाल-सेना तुरंत इस काम के लिए तैयार हो गयी। घेरा डाल दिया गया। मुनमुन गिरफ्तार हो गया। फ़रार असामी पकड़ लिया गया। किसी ने अगली टाँगे पकड़ीं, किसी ने पिछली। माधो ने उसके गले में अपनी छोटी बाँहे डाल दीं। सब उसे लेकर आंगन में सूखने के लिए डाले गये पुआल के ‘पैरेत’ पर पहुंचे। बैठकर सब मुनमुन का आदर करने लगे। मुनमुन की माँ बच्चों को सचेत करने के लिये कभी-कभी उनकी ओर देखकर ‘में-में’ कर देती, मानो यह कहना चाहती हो, ‘बच्चों देखो मुनमुन का कान न दुखाना!’
मुनमुन अपनी आव-भगत और लाड़-प्यार से जैसे ऊब रहा था। मनुष्यों के प्यार की निस्सारता जैसे वह अजपुत्र खूब समझता हो। वह अच्छी तरह कसकर पकड़े जाने पर भी अवसर पाकर कूद-फाँद मचाकर निकल भागने का प्रयत्न करता, विवशता में-में कर माँ को पुकारता, लाचार हो आँखें मूँदकर चुप हो जाता। लड़के उसे कुछ खिलाने की नियत से उसका मुँह खोलना चाहते; वह दाँत बैठा लेता। वे उसे पुचकारते वह अनसुनी कर देता। पता नहीं, उस छोटे बकरे के अल्प जीवन की किस घटना ने उसे मनुष्यों से शंकित कर दिया था।
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