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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


संसार में अज्ञान अथवा अभ्यास ही भय की गुरुता की उपेक्षा का कारण होता है। मुनमुन ने धीरे-धीरे अभ्यास से आशंका के महत्त्व को अपेक्षणीय वस्तु समझना सीखा। अब वह अभ्यस्त हो गया था, बच्चों के उपद्रवों का सामना करने में-धीरे-धीरे उसके जीवन में नित्य ये उपद्रव इतने बार घटने लगे कि यह उनके प्रति एक प्रकार की ममता का अनुभव करने लगा। उसे भी अच्छा लगता, उन बच्चों का उसे दौड़ाना दौड़ कर पकड़ना, पकड़कर उसकी साँसत करना, उसकी पीठ पर चढ़ना, उसके कान पकड़कर उसे खेत की ओर ले जाना, मुँह खोलकर उसमें बल-पूर्वक कुछ खाने की चीजें ठूँस देना। बच्चों के साथ इस प्रकार उसके पूरे दो वर्ष बीत गये। अब उन्हें एक-एक करके पहचानाने भी लगा। उसके अज-मस्तिष्क में बच्चों के व्यक्तित्व की कल्पना निर्गुण रूप में न रहकर सगुण रूप में रहने लगी। इसका प्रमाण उसका आचरण था। वह उस बाल-समुदाय में से माधो को तुरंत पहचान लेता उसके पास बिना बुलाये ही–उपेक्षा करने पर भी बार-बार हटाये जाने पर भी-जा पहुँचता था। उसके अन्य साथियों में से वह उनके गुण और अच्छे-बुरे आचरणों के अनुसार उसी मात्रा में उनसे स्नेह या निर्लिप्सा प्रदर्शन करता। इसी से हम कहते हैं कि बकरी का बच्चा भी मनुष्यों की परख कर सकता था!

माधो और मुनमुन की मैत्री, अब कुछ-कुछ आध्यात्मिक स्नेह की सीमा तक पहुँच रही थी। इसे कहते हमें संकोच नहीं होता। बकरे आध्यात्म या उसके किसी रूप का साक्षात् करने के अधिकारी हैं या नहीं–यह प्रश्न ही दूसरा है; परन्तु हमारे देखने में वह मुनमुन अपने साथी माधो के हृदय के भावों के समझने में असमर्थ होता था, समझने की चेष्टा करता था। और उसके प्रति सहानुभूति रखने लगा था। लड़का जब माता-पिता की डाँट खाकर अपनी किताबें ले एक कोने में पहुँच दुखी होकर उन्हें पलट कर उनकी आवृत्ति करने बैठता, उस समय मुनमुन उनके पास पहुँच उसकी पीठ से अपनी पीठ रगड़ उसे मनाता और अवसर पाकर उसकी पुस्तक हड़प करने की चेष्ठा करता। माधो के छीनने पर वह इस प्रकार भाव भरी आँखों से उसकी ओर देखता, मानो कह रहा हो, माधो उन्हें मुझे खा जाने दो, ये मेरे ही योग्य हैं। इन सफेद-नीरस पत्तों पर रंगे हुए चिन्हों में तुम्हारे लिए देखने की कोई वस्तु नहीं है। उनका उचित स्थान मेरा उदर ही है। चलो, हम दोनों कहीं दूर–इन बखेड़ों से दूर-किसी ऐसे स्थान में चलें, जहाँ केवल हम हों, तुम हो। तू मेरी पीठ पर चढ़कर मुझे दौड़ाना, मैं तुम्हें प्रसन्न करने हेतु छलाँग भरूँगा। तुम मुझे हरी-हरी घास खिलाना। मैं तुम्हारी गोद में मुँह डाल आँखें मूँद लूँगा। तुम मेरी पीठ पर सिर टेककर सुख से विश्राम करना।’ मुनमुन की बातें समझें या न समझें (हम समझदार ठहरे) पर माधो के लिए उसकी मूकवाणी हृदय की भाषा थी।

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