कहानी संग्रह >> हिन्दी की आदर्श कहानियाँ हिन्दी की आदर्श कहानियाँप्रेमचन्द
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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ
वह माता पिता के दंड को भूलकर मुनमुन के साथ घर से निकल जाता। फिर-दिन भर वह बाग-बाग खेत-खेत उसे लिए हुए चक्कर काटता। मुनमुन तो हरी-हरी घास देख खाने से न चूकता, पर माधो का जैसे मुनमुन को भरपेट खिलाने में ही पेट भर जाता था। उसकी भूख-प्यास उस काले कनकटे मुनमुन के रहते उसे सताने का साहस न कर पाती थी।
मुनमुन की आयु अब महीनों के माप से बढ़कर वर्षों में आँकी जाने लगी। माधो सात साल का हुआ। मुनमुन ३६ मास ही का था, पर वह माधो से अधिक बलिष्ठ, चतुर और फुर्तीला था। कभी-कभी अब दोनों में रस्साकसी होती, तो मुनमुन ही माधो को घसीट ले जाता, पर यह सब केवल विनोद या खींचा-तानी के लिए ही होता था। यों कभी माधो को मुनमुन ने दिक नहीं किया। वह उसके पीछे फिरता, वह उसके पीछे लगा रहता। दोनों ऐसे हिले-मिले थे मानो बहुत पहले से परिचित हों। मुनमुन को देखकर जब माधो के साथी लड़के उसकी प्रशंसा करते ‘अजी, इसके सींग कैसे सुन्दर हैं! जरा-सा तेल लगा दिया करो माधो इसके बाल कैसे चमकते हैं जी! हाथ फेरने में बड़ा अच्छा लगता है। अजी खूब तैयार है माधो तुम्हारा मुनमुन! और वे माधो की ओर अपनी सौंदर्य-प्रियता की अनुभूति से प्रेरित होकर इस आशा से देखते, जैसे माधो यदि उन्हें ऐसा कहने और अपने मुनमुन को प्यार करने से रोकेगा नहीं, तो वे अपने को धन्य समझेंगे। माधो अपने मुनमुन की प्रशंसा सुनता, तो उसके हृदय में मुनमुन के प्रति स्नेह की आग प्रबल हो उठती। उसके जी में एक अज्ञात गुदगुदी होती। वह लपककर मुनमुन को गले लगाकर चूमने और प्यार करने लगता। ऐसे अवसर पर उसके बाल-साथी मुनमुन को सुहलाने की अपनी साध पूरी करने से नहीं चूकते।
नैसर्गिक सौंदर्य-प्रियता और निःस्वार्थ प्रेम के ये भाव बच्चों को अपने को भूल जाने में सहायक होते। वे तन्मय होकर माधो के मुनमुन की सेवा-सुश्रूषा में लग जाते। उनका मुनमुन के प्रति स्नेह और सहानुभूति ‘भक्तों’ की भक्ति से कम नहीं थी।
मुनमुन पर सभी छोटे-बड़े की आँखें लगी थीं। अपनी-अपनी भावना के अनुसार सब उसे अपनी आँखों से देखते; परन्तु मुनमुन ने जैसे इसकी कभी परवाह ही नहीं की, वह मस्त रहा अपने चलने-फिरने और कुलेल करने में। उसे किसी की दृष्टि और कुदृष्टि की आशंका जैसे थी ही नहीं। माधो के रहते उसने कभी इस विषय पर सोचने की आवश्यकता ही नहीं समझी।
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