कहानी संग्रह >> हिन्दी की आदर्श कहानियाँ हिन्दी की आदर्श कहानियाँप्रेमचन्द
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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ
मुनमुन के जन्म के पश्चात उसकी माता बकरी ने कम-से-कम एक दर्जन बच्चे दिये होंगे। उसकी माता की कई पीढ़ियों ने इसी प्रकार बच्चे और दूध देकर अनेक वर्षों से स्वामी के कुल की सेवा में अपने कुल की मर्यादा बनाये रखी थी। मुनमुन की माँ अपने उदर के अनेक शिशुओं में केवल मुनमुन ही को देखकर मानो उसका साक्षात् अनुभव कर सकी थी कि उसके बच्चे भी इतने बड़े हो सकते थे। नहीं तो उसने यही समझा था कि जीवन में उसका धर्म केवल बच्चे देना, दूध देना और इसी में सफल मनोरथ होने के निमित्त-खाना, पीना और निश्चित जुगाली करना है।
मुनमुन को अब माता से उतना सरोकार न रहता और इसी से कदाचित् उसके प्रति उसका उतना स्नेह नहीं दिखायी पड़ता, जितना कि जन्म के बाद कुछ महीनों तक था; परन्तु उस बकरी के हृदय में जैसे अब भी मुनमुन के प्रति कोई भाव छिपा था। वह उसे माधो के साथ खेलते या धूप में चारपाई पर लेटे देख जैसे सन्तोष की आँखों से दोनों को निहारकर आशीर्वाद देती थी। मुनमुन कभी-कभी उसके पास पहुँचकर उसकी नाँद से कुछ भूसी-चोकर खा लेता।
वह छीन-झपटकर खाने में अपने धर्म की मर्यादा समझता; उसकी माँ उसकी सीनाजोरी पर उदासीनता प्रकट करती हुई अन्त में सन्त जैसे जुगाली करना भी अपना कर्तव्य समझती थी।
मुनमुन की खातिर कभी-कभी माधो भी उसकी माँ की देखभाल किया करता। उसकी इच्छा होती कि फिर मुनमुन अपने बचपन की भाँति अपने माँ का दूध पीता। कभी-कभी वह उसे पकड़कर उसका मुँह थन तक लगा देता; पर मुनमुन उसे अपने छोटे भाइयों का अधिकार समझ मुँह फेर लेता। माधो का मानुषी हृदय उस पशु के इस गुप्त भाव का कदाचित् अनुमान नहीं कर पाता था। संभव है कभी समझ में आवे; परन्तु उस समय इसे वह मुनमुन की धृष्टता और अपने स्वामी की इच्छा की अवहेलना समझता था और इसी आधार पर वह अपनी न्यायवृत्ति के अनुसार मुनमुन को दंड देता।
उसका दंड मुनमुन प्रसन्नता से स्वीकार करता और दंड ही क्या होता–छोटे-छोटे हाथों के दो-एक थप्पड़ या पीठ पर दो-एक घूँसे। मुनमुन इन दंड-प्रहारों पर केवल अपना ‘सहर्ष स्वीकार’ प्रदर्शन करता और उसके पश्चात् मानो उसके प्रायश्चित में अपना शरीर हिलाकर वह गर्द झाड़ देता या सिर हिलाकर अपने सींग नीचे कर देता। फिर दंडित विधायक दोनों मित्र की भाँति किसी ओर विचरण करने चल देते।
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