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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


इस प्रकार कुछ दिन और बीते। माधो अब आठ बरस का हो गया। उसका मुनमुन चार साल का पट्ठा हुआ। दोनों देखने में सुन्दर लगते। माधो को देखकर उसका पिता प्रसन्न होता। माँ अपने को धन्य समझती दोनों के मन में आशा का दीपक और भी प्रकाशमान होता जान पड़ता। मुनमुन की बूढ़ी माँ अब और भी बूढ़ी हो चली थी। उसके बच्चे न होते। यदि बकरी की माँ को कोई अधिकार अपने बच्चों पर रखने का है तो उसी अधिकार से वह भी अपने मुनमुन को देखती, उसे देखकर सुखी होती थी। वह कुछ सोचती थी या नहीं; पर उसकी मुद्रा से यह भाव प्रकट हो सकता था कि वह बुढ़ापे में अपनी आँखों के सामने एक संतान को देखकर सुखी थी और यदि पशु को भी परमात्मा का स्मरण करने का अधिकार है तो वह निश्चय उस समय परमात्मा का स्मरण करती थी, जब उसे लोग पुआल पर बैठी आँखें मूँदे जुगाली करते हुए देखते थे। उसके परमात्मा का क्या रूप था, हम नहीं कह सकते; परंतु यह निश्चय है, उस पशु की कल्पना में परमात्मा का अधिकार, मनुष्य-सा कदापि न होगा। क्यों? इसका उत्तर वह बकरी या उसकी संतान दे सकेगी!

माधो मुनमुन को गाड़ी में जोतने का स्वप्न देखने लगा। वह सोचता था, यदि एक गाड़ी हो जाय तो मैं भी मुनमुन को जोतकर सैर करने निकलूँ। उस समय उसके अन्य साथी उसकी ओर किन-किन आँखों से देखेंगे–इसकी कल्पना वह बालक कर लेता था; और उसी कल्पना के परिणामस्वरूप अपने हृदय में आयी हुई प्रसन्नता से विह्वल होकर वह पिता से गाड़ी बनवा देने का आग्रह करता। नित्य अपने प्रस्ताव को कार्य-रूप में परिणित होते देखने की इच्छा करता। पिता ‘नहीं, नहीं करता; पर मुनमुन को वह ऐसे अवसर पर ऐसी आँखों से देखता जैसे वह सोचता हो कि यही इस झगड़े का घर है।

मुनमुन ने मनुष्यों की भाषा सीखने या समझने का प्रयत्न नहीं किया था। यद्यपि वह उन्हीं के बीच रहता आया है, परंतु वह उनकी छिपी हुई हृदय की भावनाएँ जैसे भांपने के योग्य हो गया था। इधर कुछ दिनों से उसे ऐसा जान पड़ा, मानो उसके प्रति लोगों का ध्यान अधिक आकृष्ट हो रहा है। उसे देखकर लोग आपस में कुछ-कुछ कहते-सुनते थे। कभी-कभी उसे उठाकर उसके बोझ का जैसे अन्दाज भी लोग लगाते थे।

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