कहानी संग्रह >> हिन्दी की आदर्श कहानियाँ हिन्दी की आदर्श कहानियाँप्रेमचन्द
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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ
मालिक के घर कुछ ऐसी तैयारियाँ या नित्य के साधारण वातावरण में परिवर्तन होते दिखायी देने लगे, जिसे देख मुनमुन को अपने बचपन के किसी कटु अनुभव की स्मृति कष्ट देने लगती। स्मृति बहुत धुँधली और मन्द हो चुकी थी। उसकी पीड़ा की मात्रा यद्यपि अधिक न थी। पर उसके कारण उसे हृदय में एक ऐसी आशंका का उदय होते दीख पड़ा, जिसे मुनमुन का अज-मस्तिष्क सुलझा न सका। वह इसी हेतु कुछ चौंका हुआ आशंकित-सा रहने लगा। माधो यह बात न समझ सका। वह कैसे समझता, कान तो एक ही बार छेदा जाता है न, फिर क्या डर था? माधो ने अपने मुंडन में मुनमुन के सिर में सिंदूर लगाते उसके गले में माला डालते देखा था। उसे प्रसन्नता हो रही थी कि उसके ‘मुंडन’ पर फिर उसके मुनमुन का श्रृंगार होगा। उसकी पूजा होगी। वह इस पर प्रसन्न था कि उसका मुनमुन इस बार बड़ा-सा, सुन्दर-सा है। अबकी बार वह स्वयं भी श्रृंगार करेगा और उसे सजाकर वह अपने साथियों को गर्व से दिखायेगा।
कैसे क्या हुआ–हमने उस बलि-विधान को अपनी आँखों देखा नहीं और देखकर भी हम देखने में समर्थ न होते। पर दूसरे दिन प्रातः काल हमने माधो को मुनमुन की खोज में पागल की भाँति इधर-उधर घर के कोने-कोने में झांकते देखा
द्वार पर नीम की शीतल छाया में भैरवी बज रही थी। घर में स्त्रियाँ मंगलगान कर रही थीं। बाहर बिरादरी के भोज की तैयारी में नौकर-चाकर व्यस्त थे। जानकर चतुर रसोइये, अपनी कार्य कुशलता की डींग हाँक-हाँककर, अच्छे-अच्छे व्यंजन बनाने का दावा कर रहे थे। छप्पर से छाये हुए, टट्टियों से घिरे चौपाल के एक कोने में मुँशी जी चिलम फूँकते हुए चूल्हे पर चढ़े ‘देग’ की देखरेख में लगे थे। इधर कम लोग आते थे। माधो भी उधर आकर अपने मुनमुन की खोज नहीं पा सकता था। वह क्या समझता कि उसका मुनमुन, इस समय देवी के चरणों में गति पाकर अपने शरीर का, इस महोत्सव के अवसर पर आये हुए अतिथियों के सम्मुख ‘प्रसादे’ के रूप में अर्पण करने के लिए निमित्त, ‘देग’ में छिपा है।
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