कहानी संग्रह >> हिन्दी की आदर्श कहानियाँ हिन्दी की आदर्श कहानियाँप्रेमचन्द
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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ
लोग अपनी-अपनी धुन में मस्त थे। माधो अपने मुनमुन की खोज में परेशान था। वह किससे पूछता? मुनमुन का पता उसे कौन बतलाता। क्या उसके घर वाले या उस समय वहाँ उपस्थित लोग उसे बतलाते तो क्या बतलाते? बतलाकर क्या समझाते? माधो विक्षिप्त की भाँति भटकता हुआ बकरी के पास चला। मुनमुन की अनुपस्थिति में उसे ऐसा जान पड़ता मानो उसकी माँ ही उसे अपने बच्चे का पता बतला सकती है। वह बाड़े में बँधे पशुओं के बीच से बचकर कोने में बँधी बकरी के पास पहुँचा। बकरी निश्चिन्त बैठी ‘पागुर’ कर रही थी।
उसके गले में बाँहे डाल, उसकी रूखी भूरी पीठ पर सिर छिपाकर माधो सिसक-सिसक रोने लगा। उसकी अंतर्वेदना की करुण पुकार किसने सुन पायी? यदि कोई सुन सका हो, तो वही बकरी या मनुष्यों का वह परमात्मा, जिसे वे सर्वत्र वर्तमान समझते हैं।
रोते-रोते माधो की हिचकियाँ बँध रही थीं। आँसुओं के कारण भीगी पीठ की आर्द्रता का अनुभव कर वह बकरी कभी-कभी प्रश्नात्मक नेत्रों से माधो की ओर देखती। माधो उसकी आँखों से आँखें मिलाते ही दुःख से विह्वल हो उठता। वह मुनमुन के विछोह से विकल हो तड़प-तड़पकर रोने लगता। उसके घर का वातावरण उत्सव के चहल-पहल और गाने बजाने से मुखरित हो रहा था। वायु-मंडल धूप और सुगंध से लदा था। एक ओर हवन के हव्य और आज्य की धूम राशि, दूसरी ओर भोज के व्यंजनों की सोंधी सुगंध! इन सबसे अप्रभावित वह बकरी बैठी जुगाली कर रही थी और माधो मुनमुन के लिए भूमि पर पड़ा तड़प रहा था! एक ने, मानो मानव-समाज की हृदय-हीनता का आजीवन अनुभव कर दार्शनिक की उदासीनता प्राप्त की थी–दूसरा मानव-जाति की सभ्यता की वेदी के सोपान की ओर घसीटे जाने पर, बकरी के बच्चे की भाँति छटपटा रहा था।
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