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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


 

परिवर्तन

श्री वीरेश्वर सिंह बी.ए.

[ आप बाँदा के निवासी हैं। आपने विद्यार्थी जीवन में कुछ अच्छी कहानिया लिखी थीं। बाद में आपने लिखना बन्द कर दिया। ]

कुटी के लिए एक छोटा-सा दीपक काफी है, और मनुष्य जीवन के लिए एक छोटी-सी बात-परिवर्तन के प्रकाश में अन्धकार के अपरिचित मुस्कुराते हैं, आँखें मिलती हैं, बातें खुलती हैं; और एक महान् क्षण में संसार बदल जाता है। एक जरा-सी नजर, एक छोटी-सी आह, एक उमड़ती हुई मुस्कान–दुनिया की इन्हीं छोटी-छोटी बातों में तो उसकी आत्मिक शक्ति भरी है–कलेजे में छुरी-सी तैर जाती है, आत्मा कसक उठती है, दिल के साथ जमीन-आसमान एक नए रंग में खिल उठते हैं और हम आश्चर्य से देखते हैं–अरे! वह क्या?

आज रामू के हृदय को कोई देख सकता तो वह कह उठता–‘अरे! वह क्या?’ वह लबालब हो रहा था और भरे हुए मानस में उसकी आत्मा ऊपर उठकर खिल रही थी।

रामू फेरी लगाने निकला था। इस जीवन-स्वप्न में मिट्टी की पृथ्वी पर, मोम के खिलौने बनाना और बेचना कोई अनुपयुक्त रोजगार नहीं, और रामू यही करता था। वह मोम की चिड़िया बनाता, उसमें लाल, पीला, हरा रंग देता और उसको एक डोरे के सहारे अपनी लकड़ी से झुला देता। वह रोज सुबह निकल जाता और शाम होते-होते कुछ-न-कुछ कमा लाता। रंग-बिरंगी झूमती हुई चिड़ियों की पंक्ति बालकों के मन उड़कर लटक रहते, और रामू ललचाती हुई आवाज में गाता–

‘लल्ला की चिरैया है–भय्या की चिरैया है।
जिसके होवेंगे खेलैया, वही लेवेगा चिरैया,
वाह, वाह री चिरैया।’


चलते-चलते रामू ने आवाज लगायी–‘लल्ला की चिरैया है, भय्या की चिरैया।’ उसकी भारी बेधती आवाज गाँव के घरों में गूँज उठी। बच्चे उछल पड़े। कितने ही घरों में ‘अम्मा...ऊँ-ऊँ’ और रोना ठुमकना मच गया।

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