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हिन्दी की आदर्श कहानियाँ

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :204
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8474
आईएसबीएन :978-1-61301-072

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प्रेमचन्द द्वारा संकलित 12 कथाकारों की कहानियाँ


रामू कहता जा रहा था–‘जिसके होवेंगे खेलैया, वही लेवेंगे चिरैया, वाह वाह री चिरैया।’
यह चोट थी। बिना बच्चेवालियों ने एक गहरी साँस भरी, और माताओं के अंतर में, चुपके से, एक अनिवर्चनीय सुख दिप उठा।

रामू चला जा रहा था। खरीदने वाले उसे खुद बुलाते, मोल-भाव करते, और लेते या उसे लौटा देते। कितने बालकों ने उसे बुलाया, कितनों ने ही उससे मोलभाव किया। वह एक चिड़िया दो पैसों में बेचता था, इससे कम में वह किसी को न देता था। जो ले सकते वे लेते, जो न ले सकते वे मन मारकर रह जाते। एकाएक किसी ने रामू को पुकारा– ‘ओ चिरैयावाले’। रामू लौट पड़ा?

एक द्वार पर एक बूढ़ी और उसी के पास एक पाँच साल की बालिका, उसी से लगी हुई, आधी उसी पर लदी हुई बैठी थी। रामू के पहुँचते ही वह खिल उठी। वह एक चिरैया जरूर लेगी। भुनभुनाकर उसने कहा–‘नानी, वही, वह लाल-लाल सी।’

‘अच्छा ठहर तो’–वृद्धा बोली–‘भय्या कैसे-कैसे दिये चिरैया?’ –वृद्धा ने रामू से पूछा।

‘दो-दो पैसे माई!’ रामू बोला।

‘ठीक बताओ तो ले लूँ एक बच्ची के लिए।’–वृद्धा ने कहा। बालिका का हृदय दुप-दुप कर रहा था। मन ही मन वह मना रही थी–‘हे राम, यह चिरैया वाला मान जाय।’ आशा, संदेश, हर्ष निराशा, उसके हृदय में कुछ चुभ-से रहे थे। आकांक्षा तड़प रही थी, उम्मीद चकोर-सी आँख लगाये बैठी थी। सौदागर क्या कहेगा? क्या कहने वाला है? यह उसके लिए भाग्य का प्रश्न था! उसके कान सुन रहे थे, रामू ने कहा–‘नहीं माई, कम-ज्यादा न होगा; दो-दो पैसे तो सभी को देता हूँ।’

वृद्धा ने कहा–‘अच्छा, तो तुम्हारी मर्जी, दो-दो पैसे तो बहुत हैं।’

सौदागर मुड़ पड़ा। लड़की का चेहरा उतर गया–उसका दिल डूब गया। उसकी आशा कहाँ थी?

‘नानी, दो पैसे क्या बहुत हैं?’ –उसकी आत्मा चीख रही थी।

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