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होरी (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8476
आईएसबीएन :978-1-61301-161

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‘होरी’ नाटक नहीं है प्रेमचंद जी के प्रसिद्ध उपन्यास गोदान का नाट्यरूपान्तर है


सिलिया— तुम तो उसे खेला भी न पाये।

मातादीन— नहीं सिलिया एक दिन खेलाया था।

सिलिया— सच?

मातादीन— सच।

सिलिया— मैं कहाँ थी?

मातादीन— तू बाजार गयी थी।

सिलिया— तुम्हारी गोद में रोया नहीं?

मातादीन— नहीं सिलिया हँसता था।

सिलिया— सच?

मातादीन— सच।

सिलिया— बस, एक ही दिन खेलाया?

मातादीन— हाँ, एक ही दिन; मगर देखने रोज आता था। उसे खटोले पर खेलते देखता था और दिल थाम कर चला जाता था।

सिलिया— तुम्हीं को पड़ा था।

मातादीन— मुझे पछतावा होता है कि नाहक उस दिन उसे गोद में लिया। यह मेरे पापों का दण्ड है।

सिलिया— अच्छा, अब चले जाओ। कहीं पण्डित देख न लें।

मातादीन— मैं अब किसी से नहीं डरता।

सिलिया— घर से निकाल देंगे तो कहाँ जाओगे?

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