कहानी संग्रह >> कलम, तलवार और त्याग-1 (कहानी-संग्रह) कलम, तलवार और त्याग-1 (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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स्वतंत्रता-प्राप्ति के पूर्व तत्कालीन-युग-चेतना के सन्दर्भ में उन्होंने कुछ महापुरुषों के जो प्रेरणादायक और उद्बोधक शब्दचित्र अंकित किए थे, उन्हें ‘‘कलम, तलवार और त्याग’’ में इस विश्वास के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है
‘प्यारे देशवासियों! पुनीत आर्यावर्त्त के बसनेवालो! क्या तुम अपनी इस तिरस्करणीय भीरुता से वह स्वाधीनता प्राप्त तक सकोगे, जो केवल वीर पुरुषों का अधिकार है? हे भारतनिवासी भाइयो! अच्छी तरह याद रखो कि सीता, सावित्री और दमयंती तुम्हारी जाति की देवियाँ हैं। हे वीर पुरुषो! मर्द बनो और ललकारकर कहो, मैं भारतीय हूँ। मैं भारत का रहनेवाला हूँ। हर-एक भारतवासी, चाहे वह कोई भी हो, मेरा भाई है। अपढ़ भारतीय, निर्धन भारतीय, ऊँची जाति का भारतीय, नीची जाति का भारतीय सब मेरे भाई हैं। भारतीय मेरा भाई है। भारत मेरा जीवन, मेरा प्राण है। भारत के देवता मेरा भरण-पोषण करते हैं। भारत मेरे बचपन का हिंडोला, मेरे यौवन का विलास-भवन और बुढ़ापे का बैकुंठ है। हे शंकर! हे धरती माता! मुझे मर्द बना। मेरी दुर्बलता दूर कर और मेरी भीरुता का नाश कर!’
स्वामीजी के उपदेशों का सार यह है कि हम स्वजाति और स्वदेश के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करें, आत्मबल प्राप्त करें, बलवान् और वीर बनें नीची जातियों को उभारें और उन्हें अपना भाई समझें। जब तक ९॰ प्रतिशत भारतवासी अपने को दीन-हीन समझते रहेंगे, भारत में एका और मेल का होना सर्वथा असंभव है। हम धर्म में आस्था रखें पर संन्यासी-विरागी न बनें। हाँ, हम अपने एका के लिए सब प्रकार के त्याग करने को तैयार रहें। हम एक पैसा कमाएँ, पर उसे अपने सुख-विलास में खर्च न करें, राष्ट्रहित में लगा दें। हिंदू तत्त्वज्ञान के कर्म-संबंधी अंग का अनुसरण करें। शम, दम और तप, त्याग उन लोगों के लिए छोड़ दें, जिन्हें भगवान् ने इस उच्च पद पर पहुँचाने की क्षमता प्रदान की है।
स्वामीजी की शिक्षा का आधार प्रेम और शक्ति है। निर्भीकता उसका प्राण है और आत्मविश्वास उसका धर्म है। उनकी शिक्षा में दुर्बलता और अनुनय-विनय के लिए तनिक भी स्थान नहीं था। उनका वेदांत मनुष्य को सांसारिक दुख-क्लेश से बचाने, जीवन-संग्राम में वीर की भाँति जुटने और मानसिक आध्यात्मिक आकांक्षाओं की पूर्ति की समान रूप से शिक्षा देता है।
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