कहानी संग्रह >> कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह) कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)प्रेमचन्द
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महापुरुषों की जीवनियाँ
सर सैयद ने उर्दू भाषा की जो सेवा की, उसकी सराहना किन शब्दों में की जाए। यों कहना चाहिए कि उर्दू उन्हीं के आश्रय में पाली-पोसी गई। उस समय तक उर्दू में शायरी का बाज़ार गर्म था। साहित्य पद्य रचना और कवि चर्चा तक सीमित था। उसमें न गहराई थी, न ऊँचाई। कठिन विषयों की चर्चा और गंभीर भावों को व्यक्त करने की उसमें योग्यता न थी। ऐतिहासिक, आलोचनात्मक और शास्त्रीय विषयों पर उसे अधिकार न था। सर सैयद ने इन विषयों पर ‘तहज़ीबुल अख़लाक़’ में जो निबंध लिखे, वह उर्दू के ‘क्लासिक’-स्थायी साहित्य हैं। उनके शब्द-शब्द से गंभीर अध्ययन मानव प्रकृति का सूक्ष्म परिचय और शास्त्रीय विषयों का पांडित्यपूर्ण आलोचन टपक रहा है। कहने का ढंग इतना सीधा-सादा है कि साधारण विद्याबुद्धि का मनुष्य भी अनायास समझ ले। न पेचदार पदविन्यास, न उलझे हुए वाक्य, न क्लिष्ट शब्दावली। क्लिष्ट से क्लिष्ट भावों को इतनी सरलता से व्यक्त करते जाते हैं कि देखकर दंग रह जाए। यद्यपि ये निबंध सबके सब उनके दिमाग़ से नहीं निकले हैं, बेकन, एडिसन और कोई अन्य साहित्यकारों के भावों की छाया ग्रहण की गई है, पर कहने का ढंग उसका अपना है और उसने निबन्धों में नयापन पैदा कर दिया है। उनकी साहित्य-सेवा के पुरस्कार स्वरूप सरकार ने उन्हें ‘सर’ की उपाधि प्रदान कर अपनी गुणज्ञता का परिचय दिया।
आयु के अन्तिम भाग में लगातार बीमारियों के कारण सर सैयद बहुत कमजोर हो गए थे। पर उस अवस्था में जाति पर मिटा हुआ यह महापुरुष उसी उत्साह से जाति-सेवा में जुटा हुआ था। अन्त को १८९८ ई० की ७ वीं मार्च को महाप्रस्थान का संदेश आ गया और उसने अपने जीवन के अनेक अमर स्मृति चिह्न छोड़कर इस नश्वर जगत् से कूच दिया।
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