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कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8502
आईएसबीएन :978-1-61301-191

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महापुरुषों की जीवनियाँ


चित्रकला का पहला पाठ रेनाल्ड्स ने अपनी दो बहिनों से पढ़ा, जिनकी इस कार्य में कुछ रुचि थी। जो कुछ वह अंकित करतीं, रेनाल्ड्स तुरन्त उसकी नकल उतार लेता। इसके सिवा सचित्र पुस्तकों की भी नकल किया करता। इस प्रकार बचपन से ही उसकी दृष्टि में ग्रहण शक्ति और हाथों में सफाई आने लगी। अभी आठ ही बरस का था कि कहीं से चित्रकला की एक पुस्तक उसके हाथ लग गई। फिर क्या था, बड़े प्रेम से उसका पारायण कर डाला। इस अध्ययन का फल यह हुआ कि उसने अपनी पाठशाला का एक नक़शा खींचा। पादरी साहब ने यह नक़शा देखा, तो बेटे की पीठ ठोंकी और जब रेनाल्ड्स को मालूम हो गया कि पिताजी भी मेरे शौक को पसन्द करते हैं, तो वह चित्रकारी में जी जान से लग गया। धीरे-धीरे घर के सब लोगों की सबीह बना डाले। दोस्तों ने यह तसवीरें देखीं, तो बढा़वे देने लगे। बीसवें साल ने उसे पक्का चित्रकार बना दिया।

पर जिस कस्बे में वह रहता था, वह बिल्कुल गुमनाम था। कल्पना और विचारों को विस्तृत करने, कला के आचार्यों से मिलने, उनकी शिक्षा से लाभ उठाने और नाम-यश कमाने के साधनों का सर्वथा अभाव था। इसलिए आवश्यक हुआ कि वह लंदन जाकर कला का अभ्यास करे। हडसन उस समय मुखाकृति के चित्रण में प्रसिद्ध था। उसका शिष्य हो गया। पर हडसन में इसके अतिरिक्त और कोई योग्यता न थी। रेनाल्ड्स जैसा प्रतिभावान् बालक, जिसके हृदय में उच्चाकांक्षा और उमंगों का स्रोत उफन रहा था, उसकी शिक्षा से क्या लाभ उठा सकता था ? हडसन ने उसकी प्रवृत्ति का अन्दाज़ा न पाया। मध्यम श्रेणी के एक इटालियन चित्रकार के चित्रों की उससे नकल कराने लगा।

रेनाल्ड्स ने इस काम को ऐसी खूबी से किया कि असल और नक़ल में बाल बराबर भी अन्तर न रहा। फिर भी उसने ज्यों त्यों करके यह दो बरस काटे। इस अरसे में उसने बहुत से चित्र बनाए। कहते हैं कि उनमें उसकी भावी यश झलक मौजूद है। शिष्य की कुशलता देखकर गुरु के हृदय में ईर्ष्या की आग जलने लगी। अन्त में एक चित्र, जिसके निर्माण में रेनाल्ड्स ने अपनी सारी कला दी थी, दोनों के बिलगाव का कारण हुआ। उसने समझ लिया कि गुरुजी को जो कुछ सिखाना-पढ़ाना था, सिखा-पढ़ा चुके। अपने कस़बे को लौट आया। इस विच्छेद को वह अपने लिए बड़ा शुभ माना करता था, क्योंकि कुछ दिन वह और हडसन की शागिर्दी में रहता तो, उसको भी उसी नक्काली की आदत लग जाती, जो सच्ची चित्रकला की जानलेवा है। इस बेकारी में उसने तीन साल काटे, पर सच यह है कि इसी अभ्यास ने उसे रेनाल्ड्स बना दिया। इस समय चित्र बनाने के सिवा उसे और कोई काम न था। इसी काल में उसने प्रकृति की पुस्तक का भी अध्ययन किया, जो आगे चलकर उसके यश और सफलता में बड़ा सहायक हुआ।

जब वह हडसन की शिष्यता में था, एक दिन बाजार में नीलाम देखने गया। बहुत से आदमी मंडलाकार खड़े थे। अचानक ‘पोप, पोप’ का शोर हुआ और सुप्रसिद्ध कवि पोप आता दिखाई दिया। लोग सम्मान प्रकाश के लिए इधर-उधर हटने और झुक-झुककर अभिवादन करने लगे। जिसके पास से होकर वह गुजरता, वह उसका हाथ छू लेता। जब रेनाल्ड्स की बारी आयी, तो पोप ने स्वयं उसके दोनों हाथ पकड़कर हिला दिए। रेनाल्ड्स सदा गर्व के साथ इस घटना का वर्णन किया करता था। इससे प्रकट होता है कि विद्वानों के लिए उसके हृदय में कितना आदर था और उस काल के जनसाधारण पंडितों और कवियों के साथ कैसे प्रेम और आदर का बर्ताव किया करते थे।

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