उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
यह कहकर रोहिणी अपने कमरे में चली गई। सारे गहने-कपड़े उतार फेंके और मुँह ढाँपकर चारपाई पर पड़ रही। ठाकुर साहब ने यह समाचार सुना, तो माथा कूटकर बोले–इन चाण्डालिनों से आज शुभोत्सव के दिन भी शान्त नहीं बैठा जाता। इस ज़िन्दगी से तो मौत की अच्छी। घर में आकर रोहिणी से बोले–तुम मुँह ढाँपकर सो रही हो, या उठकर पकवान बनाती हो? रोहिणी ने पड़े-पड़े उत्तर दिया–फट पड़े वह सोना जिससे टूटें कान। ऐसे उत्सव से बाज़ आयी, जिसे देखकर घरवालों की छाती फटे।
विशालसिंह–तुमसे तो बार-बार कहा कि उसके मुँह न लगा करो। एक चुप सौ वक्ताओं को हरा सकती है। दो बातें सुन लो, तो तीसरी बात कहने का साहस न हो। फिर तुमसे बड़ी भी तो ठहरीं, यों भी तुमको उनका लिहाज़ करना ही चाहिए।
जिस दिन वसुमती ने विशालसिंह को व्यंग्य-बाण मारा था, जिसकी कथा हम कह चुके हैं, उसी दिन से उन्होंने उससे बोलना-चालना छोड़ दिया था, उससे कुछ डरने लगे थे, उसके क्रोध की भयंकरता का अन्दाज़ा पा लिया था। किन्तु रोहिणी क्यों दबने लगीं? यह उपदेश सुना, तो झुँझलाकर बोली–रहने भी दो, जले पर नमक छिड़कते हो! जब बड़ा देख-देखकर जले, बात-बात पर कोसे तो कोई कहाँ तक उनका लिहाज़ करे? इन्हें मेरा कहना ज़हर लगता है, तो क्या करूँ? घर छोड़कर निकल जाऊँ? वह इसी पर लगी हुई हैं। तुम्हीं ने उन्हें सिर चढ़ा लिया है न! उनसे बोलते हुए तो तुम्हारा भी कलेज़ा काँपता है। तुम न शह देते तो उनकी मजाल थी कि यों मुझे आँखें दिखातीं!
विशालसिंह–तो क्या मैं उन्हें सिखा देता हूँ कि तुम्हें गालियाँ दें? रहा, तो इसके सिवा और क्या होगा? सामने तो चुडै़ल की तरह बैठी हुई हैं, जाकर पूछते क्यों नहीं? मुँह में कालिख क्यों नहीं लगाते? दूसरा पुरुष होता, तो जूतों से बात करता, सारी शेखी किरकिरी हो जाती। लेकिन तुम तो खुद मेरी दुर्गति कराना चाहते हो। न जाने क्यों तुम्हें ब्याह का शौक़ चर्राया था?
कुँवर साहब ज्यों-ज्यों रोहिणी का क्रोध शान्त करने की चेष्टा करते थे, वह और भी बिफरती जाती थी और बार-बार कहती थी, तुमने मेरे साथ क्यों ब्याह किया। यहाँ तक कि अन्त में वह भी गर्म पड़ गए और बोले–और पुरुष स्त्रियों से विवाह करके कौन-सा सुख देते हैं, जो मैं तुम्हें नहीं दे रहा हूँ? रही लड़ाई-झगड़ों की बात। तुम न लड़ना चाहो, तो कोई ज़बरदस्ती तुमसे न लड़ेगा। आखिर रामप्रिया भी तो इसी घर में रहती है।
रोहिणी–तो मैं स्वभाव ही से लड़ाकू हूँ?
विशालसिंह–वह मैं थोड़े ही कहता हूँ।
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