उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
चक्रधर–एक काम से जाता हूँ।
मनोरमा–कोई बीमारी है क्या?
चक्रधर–नहीं, बीमारी कोई नहीं है।
मनोरमा–फिर क्या काम है, बताते क्यों नहीं? जब तक न बतलाएँगे, मैं जाने न दूँगी।
चक्रधर–लौटकर बता दूँगा।
मनोरमा–जी नहीं, मैं यह नहीं मानती, अभी बताइए।
चक्रधर–एक मित्र से मिलने जाता हूँ।
मनोरमा–आप मुस्कुरा रहे हैं। मैं समझ गई, नौकरी की तलाश में जाते हैं।
चक्रधर–नहीं मनोरमा, यह बात नहीं हैं। मेरी नौकरी करने की इच्छा नहीं।
मनोरमा–तो क्या आप हमेशा इसी तरह देहातों में घूमा करेंगे?
चक्रधर–विचार तो ऐसा ही है, फिर जैसी ईश्वर की इच्छा!
मनोरमा–आप रुपये कहाँ से लाएँगे? उन कामों के लिए भी तो रुपयों की ज़रूरत होती होगी?
चक्रधर–भिक्षा माँगूँगा। पुण्य-कार्य भिक्षा पर ही चलते हैं।
मनोरमा–तो आजकल भी आप भिक्षा माँगते होंगे?
चक्रधर–हाँ, माँगता क्यों नहीं। नहीं माँगूँ, तो काम कैसे चले!
मनोरमा–मुझसे तो आपने नहीं माँगा।
चक्रधर–तुम्हारे ऊपर तो विश्वास है कि जब माँगूँगा, तब दे दोगी, इसलिए कोई विशेष काम आ पड़ने पर माँगूँगा।
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