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उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
वज्रधर–मैं कहे देता हूँ, अगर तुमने वहाँ शादी की बातचीत की, तो बुरा होगा, तुम्हारे लिए भी और मेरे लिए भी।
चक्रधर और कुछ न बोल सके। आते-ही-आते माता-पिता को कैसे अप्रसन्न कर देते।
लेकिन जब होली के तीसरे दिन बाद उन्हें आगरे के उपद्रव, बाबू यशोदानन्दन की हत्या और अहिल्या के अपहरण का शोक समाचार मिला, तो उन्होंने व्यग्रता में आकर पिता को वह पत्र सुना दिया और बोले–मेरा वहाँ जाना बहुत ज़रूरी है।
वज्रधर ने निर्मला की ओर ताकते हुए कहा–क्या अभी जेल से जी नहीं भरा, जो फिर चलने की तैयारी करने लगे। वहाँ गये और पकड़े गए, इतना समझ लो। वहाँ इस वक़्त अनीति का राज्य है, अपराध कोई न देखेगा। हथकड़ी पड़ जायेगी। और फिर जाकर करोगे ही क्या? जो कुछ होना था, हो चुका; अब जाना व्यर्थ है।
चक्रधर–कम-से-कम अहिल्या का पता तो लगाना ही होगा।
वज्रधर–यह भी व्यर्थ है। पहले तो उसका पता लगना ही मुश्किल है, और लग भी गया तो तुम्हारा अब मुझसे क्या सम्बन्ध? जब वह मुसलमानों के साथ रह चुकी, तो कौन हिन्दू उसे पूछेगा?
निर्मला–लड़की की मर्यादा की कुछ लाज होगी, तो वह अब तक जीती ही न होगी, अगर जीती है तो समझ लो कि भ्रष्ट हो गई।
चक्रधर–अम्माँ, कभी-कभी आप ऐसी बात कह देती हैं, जिस पर हँसी आती है। प्राण-भय से शूरवीर भूमि मस्तक रगड़ते हैं, एक अबला की हस्ती ही क्या? भ्रष्ट वह होती है, जो दुर्वासना से कोई कर्म करे। जो काम हम प्राण-भय से करें, वह हमें भ्रष्ट नहीं कर सकता।
वज्रधर–मैं तुम्हारा मतलब समझ रहा हूँ, लेकिन तुम चाहे उसे सती समझो, हम उसे भ्रष्ट ही समझेंगे! ऐसी बहू के लिए हमारे घर में स्थान नहीं है।
चक्रधर ने निश्चयात्मक भाव से कहा–वह आपके घर में न आयेगी।
वज्रधर ने भी उतने ही निर्दय शब्द में उत्तर दिया–अगर तुम्हारा ख़याल हो कि पुत्र-स्नेह के वश होकर मैं उसे अंगीकार कर लूँगा, तो तुम्हारी भूल है। अहिल्या मेरी कुलदेवी नहीं हो सकती, चाहे इसके लिए मुझे पुत्र-वियोग ही सहना पड़े। मैं भी जिद्दी हूँ।
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