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उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
राजा साहब ने घबराकर पूछा–नोरा, कैसी तबीयत है?
अब मनोरमा को होश आया। उसने राजा साहब के कन्धे पर सिर रख दिया और इस तरह फूट-फूटकर रोने लगी, मानो पानी का बाँध टूट गया हो। यह पहला अवसर था कि राजा साहब ने मनोरमा को रोते देखा। व्यग्र होकर बोले–क्या बात है मनोरमा, किसी ने कुछ कहा है? इस घर में किसकी ऐसी मज़ाल है कि तुम्हारी ओर टेढ़ी निग़ाह से भी देख सके? उसका खून पी जाऊँ। बताओ, किसने क्या कहा है? तुमने कुछ कहा है, रोहिणी, साफ़-साफ़ बता दो?
रोहिणी पहले तो मनोरमा की दशा देखकर सहम उठी थी; पर राजा साहब के खून पी जाने की धमकी ने उत्तेजित कर दिया। जी में तो आया, कह दूँ, हाँ मैंने ही कहा है, और जो बात यथार्थ थी, वह कही है, जो कुछ करना हो, कर लो, खून पी के यों न खड़े रहोगे। लेकिन राजा साहब का विकराल रौद्र रूप देखकर बोली–उन्हीं से क्यों नहीं पूछते? मेरी बात का विश्वास ही क्या?
राजा–नहीं, मैं तुमसे पूछता हूँ!
रोहिणी–उनसे पूछते क्या डर लगता है?
मनोरमा ने सिसकते हुए कहा–अब मैं यहीं रहूँगी; आप जाइए। मेरी चीज़ें यहीं भिजवा दीजिएगा।
राजा साहब ने अधीर होकर पूछा–आख़िर बात क्या है, कुछ मालूम भी तो हो?
मनोरमा–बात कुछ नहीं है। मैं अब यहीं रहूँगी। आप जाएँ।
राजा–मैं तुम्हें छोड़कर नहीं जा सकता; अकेले मैं एक दिन भी जिन्दा नहीं रह सकता।
मनोरमा–मैंने तो निश्चय कर लिया है कि इस घर से बाहर न जाऊँगी।
राजा साहब समझ गए कि रोहिणी ने अवश्य कोई व्यंग शर चलाया है। उसकी ओर लाल आँखें करके बोले–तुम्हारे कारण यहाँ से जान लेकर भागा, फिर भी तुम पीछे पड़ी हुई हो? वहाँ भी शान्त नहीं रहने देतीं। मेरी खुशी है, जिससे जो चाहता है, बोलता हूँ; जिससे जी नहीं चाहता, नहीं बोलता। तुम्हें इसकी जलन क्यों होती है?
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