उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
चक्रधर–क्या आप समझते हैं कि गौ-रक्षा आप ही का धर्म है, मेरा धर्म नहीं?
यशोदा०–नहीं, यह बात नहीं है बेटा! तुम मेरे मेहमान हो और तुम्हारी रक्षा करना मेरा धर्म है।
इस वक़्त ताँगा धीरे-धीरे ख्वाज़ा महमूद के मकान के सामने आ पहुँचा। हज़ारों आदमियों का ज़माव था। यद्यपि किसी के हाथ में लाठी या ठण्डे न थे, पर उनके मुख ज़िहाद के जोश में तमतमाए हुए थे। यशोदानन्दन को देखते ही कई आदमी उनकी तरफ़ लपके; लेकिन जब उन्होंने ज़ोर से कहा–मैं तुमसे लड़ने नहीं आया हूँ। कहाँ है ख्वाज़ा महमूद! मुमक़िन हो तो ज़रा उन्हें बुला लो, तो लोग हट गए।
ज़रा देर में एक लम्बा-सा आदमी, गाढ़े रंग की अचकन पहने, आकर खड़ा हो गया। भरा हुआ बदन था, लम्बी दाढ़ी, जिसके कुछ बाल खिचड़ी हो गए थे और गोरा रंग। मुख से शिष्टता झलक रही थी। यही ख्वाज़ा महमूद थे।
यशोदानन्दन ने त्योंरियाँ बदलकर कहा–क्यों ख्वाज़ा साहब, आपको याद है, इस मुहल्ले में कभी क़ुर्बानी हुई है?
महमूद–जी नहीं, जहाँ तक मेरा ख़याल है, यहाँ कभी क़ुर्बानी नहीं हुई।
यशोदा०–तो फिर आज यहाँ क़ुर्बानी करने की नई रस्म क्यों निकाल रहे हैं?
महमूद–इसलिए कि क़ुर्बानी करना हमारा हक़ है। अब तक हम आपके जज़बात का लिहाज़ करते थे, अपने माने हुए हक़ भूल गए थे। लेकिन जब आप लोग अपने हक़ों के सामने हमारे जज़बात की परवाह नहीं करते, तो कोई वज़ह नहीं कि हम अपने हक़ों के सामने आपके जज़बात की परवाह करें। मुसलमानों की शुद्धि करने का आप को पूरा हक है’ लेकिन कम-से-कम पाँच सौं वर्षों में आपके यहाँ शुद्धि की कोई मिसाल नहीं मिलती। आप लोगों ने एक मुर्दा हक़ को जिन्दा किया है। इसीलिए न, कि मुसलमानों की ताकत और असर कम हो जाए। जब आप हमें ज़ेर करने के लिए नये-नये हथियार निकाल रहे हैं तो हमारे लिए इसके सिवा और क्या चारा है कि अपने हथियारों को दूनी ताकत से चलाएँ।
यशोदा०–इसके यह मानी हैं कि कल आप हमारे द्वारों पर, हमारे मन्दिरों के सामने क़ुर्बानी करें और हम चुपचाप देखा करें। आप यहाँ हरगिज क़ुर्बानी नहीं कर सकते और करेंगे तो इसकी जिम्मेदारी आपके सिर पर होगी।
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