उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
यह कहकर यशोदानन्दन फिर ताँगे पर बैठे। दस-पाँच आदमियों ने ताँगे को रोकना चाहा, पर कोचवान ने घोड़ा तेज कर दिया। दम-के-दम ताँगा उड़ता हुआ यशोदानन्दन के द्वार पर पहुँच गया, जहाँ हज़ारों आदमी खड़े थे। इन्हें देखते ही चारों तरफ से आकर उन्हें घेर लिया। अभी तक फ़ौज का अफ़सर न था, फ़ौज दुविधा में पड़ी हुई थी। समझ में न आता था कि क्या करें। सेनापति के आते ही सिपाहियों में जान-सी पड़ गई, जैसे सूखे धान में पानी पड़ जाए।
यशोदानन्दन ताँगे से उतर पड़े और ललकारकर बोले–क्यों भाइयों, क्या विचार है? यह क़ुर्बानी होगी? आप जानते हैं, इस मुहल्ले में आज तक कभी क़ुर्बानी नहीं हुई। अगर आज यहाँ क़ुर्बानी करने देंगे, तो कौन कह सकता है कि कल को हमारे मन्दिर के सामने गौ-हत्या न होगी।
कई आवाज़ें एक साथ आयीं–हम मर मिटेंगे, पर यहाँ क़ुर्बानी न होने देंगे।
यशोदा०–खूब सोच लो, क्या करने जा रहे हो। वह लोग सब तरह से लैस हैं। ऐसा न हो कि तुम लाठियों के पहले ही वार में वहाँ से भाग खड़े हो?
कई आवाज़ें एक साथ आयीं–भाइयों, सुन लो, अगर कोई पीछे कदम हटाएगा, तो उसे गौ-हत्या का पाप लगेगा।
एक सिक्ख जवान–अजी देखिए, छक्के छुड़ा देंगे।
एक पंजाबी हिन्दू–एक-एक की गर्दन तोड़ के रख दूँगा।
आदमियों को यों उत्तेजित करके यशोदानन्दन आगे बढे़ और जनता ‘महावीर’ और ‘श्रीरामचन्द्र’ की जयध्वनि से वायुमण्डल को कम्पायमान करती हुई उनके पीछे चली। उधर मुसलमानों ने भी डण्डे सँभाले। करीब था कि दोनों दलों में मुठभेड़ हो जाए कि एका-एक चक्रधर आगे बढ़कर यशोदानन्दन के सामने खड़े हो गए और विनीत किन्तु दृढ़ भाव से बोले–आप मगर उधर जाते हैं, तो मेरी छाती पर पाँव रखकर जाइए। मेरे देखते हुए यह अनर्थ न होने पाएगा।
यशोदानन्दन ने चिढ़कर कहा–हट जाओ। अगर एक क्षण की भी देर हुई, तो फिर पछताने के सिवा और कुछ हाथ न आएगा।
चक्रधर–आप लोग वहाँ जाकर करेंगे क्या?
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