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उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
चक्रधर–हम महाराज ही के यहाँ से आते हैं। वह बदमाश साँड़ किसका है, जो इस वक़्त सड़क पर घूमा करता है?
किसान–यह तो नहीं जानते साहब; पर उसके मारे नाकांदम है। उधर से किसी को निकलने ही नहीं देता। जिस गाँव में चला जाता है, दो-एक बैलों को मार डालता है। बहुत तंग कर रहा है।
चक्रधर ने साँड़ के आक्रमण का जिक्र करके कहा–तुम लोग मेरे साथ चलकर मोटर को उठा दो।
इस पर दूसरा किसान अपने द्वार पर से बोला–सरकार, भला रात को मोटर उठाकर क्या कीजिएगा? वह चलने लायक तो होगी नहीं।
चक्रधर–तो तुम लोगों को उसे ठेलकर ले चलना पड़ेगा।
पहला किसान–सरकार, रात भर यहीं ठहरें, सबेरे चलेंगे। न चलने लायक होगी, तो गाड़ी पर लादकर पहुँचा देंगे।
चक्रधर ने झल्लाकर कहा–कैसी बातें करते हो जी! मैं रात भर यहाँ पड़ा रहूँगा! तुम लोगों को इसी वक़्त चलना होगा।
चक्रधर को उन आदमियों में कोई न पहचानता था। समझे, राजाओं के यहाँ सभी तरह के लोग आते जाते हैं, होंगे कोई। फिर वे सभी जाति के ठाकुर थे और ठाकुर से सहायता के नाम से जो काम चाहे ले लो, बेगार के नाम से उनकी त्योरियाँ बदल जाती हैं। किसान ने कहा–साहब, इस बख्त तो हमारा जाना न होगा। अगर बेगार चाहते हों तो वह उत्तर की ओर दूसरा गाँव हैं, चले जाइए! बहुत चमार मिल जाएँगे।
चक्रधर ने गुस्से में आकर कहा–मैं कहता हूँ, तुमको चलना पड़ेगा।
किसान ने दृढ़ता से कहा–तो साहब इस ताव पर तो हम न जाएँगे। पासी चमार नहीं है, हम भी ठाकुर हैं।
यह कहकर वह घर में जाने लगा।
चक्रधर को ऐसा क्रोध आया कि उसका हाथ पकड़कर घसीट लूँ और ठोकर मारते हुए ले चलूँ; मगर उन्होंने जब्त करके कहा–मैं सीधे से कहता हूँ, तो तुम लोग उड़नघइयाँ बताते हो। अभी कोई चपरासी आकर दो घुड़कियाँ ज़मा देता, तो सारा गाँव भेड़ की भाँति उसके पीछे चला जाता।
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