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उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
राजा–यह तुमसे किसने कहा?
मनोरमा–अहिल्या देवी ने।
राजा–अहिल्या नहीं जा सकती।
मनोरमा–आप बाबूजी को क्यों नहीं समझाते?
राजा–वह मेरे समझाने से न मानेंगे। किसी के समझाने से न मानेंगे।
मनोरमा–तो फिर?
राजा–तो उन्हें जाने दो। वह बहुत दिन बाहर नहीं रहेंगे। उन्हें थोड़ी ही दिनों में लौटकर आना पड़ेगा।
मनोरमा की आँखों से अश्रुवर्षा होने लगी। उसने अवरुद्ध कंठ से कहा़–वह अब यहाँ न आएँगे। आप नहीं जानते?
राजा–मेरा मन कहता है, वह थोड़े ही दिनों में आएँगे। शंखधर उन्हें खींच लावेगा। अभी माया ने उन पर केवल एक अस्त्र चलाया है।
चक्रधर ने सोचा, इस तरह तो शायद मैं यहाँ से मरकर भी छुट्टी न पाऊँ। इनसे पूछूँ, उनसे पूछूँ। मुझे किसी से पूछने की ज़रूरत ही क्या है? जब अकेले ही जाना है, तो क्यों यह सब झंझट करूँ? अपने कमरे में जाकर दो-चार कपड़े और किताबें समेटकर रख दीं। कुल इतना ही सामान था, जिसे एक आदमी आसानी से हाथ में लटकाए लिये जा सकता था। उन्होंने रात को चुपके से बकुचा उठाकर चले जाने का निश्चय किया।
आज उन्हें भोजन से ज़रा भी रुचि न हुई। वह अहिल्या से भी न मिलना चाहते थे। उसे सम्पत्ति प्यारी है, तो सम्पत्ति लेकर रहे। मेरे साथ वह क्यों जाने लगी? मेरा मन रखने को मीठी-मीठी बातें करती है। जी में मनाती होगी, किसी तरह यहाँ से टल जाएँ। अगर मुझे पहले मालूम होता कि वह इतनी विलास-लोलुप है, तो उससे कोसों दूर रहता। लेकिन फिर दिल को समझाया, मेरा अहिल्या से रूठना अन्याय है। वह अगर अपने पुत्र को छोड़कर नहीं जाना चाहता, तो कोई अनुचित बात नहीं करती! ऐसे क्षुद्र विचार मेरे मन में क्यों आ रहे हैं? मैं यदि अपना कर्तव्य पालन करने जा रहा हूँ, तो किसी पर अहसान नहीं कर रहा हूँ।
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