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उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
गुरुसेवक–यह आप कहें। हम तो उसकी गोद में खेले हुए हैं, हम ऐसा कैसे कह सकते हैं। नोरा आज मुझ पर बहुत बिगड़ रही थी। वह खुद उसे बुलाने जा रही थी। उसकी जिद तो आप जानते हैं। जब धुन सवार हो जाती है, तो उसे कुछ नहीं सूझता।
हरिसेवक सजल नेत्र होकर बोली–नोरा जाने को कहती है? नोरा जायेगी? नहीं, मैं उसे न जाने दूँगा। लौंगी को बुलाने नोरा नहीं जा सकती। मैं उसे समझा दूँगा।
गुरुसेवक क्या जानते थे, इन शब्दों में कोई गूढ़ आशय भरा हुआ है। यहाँ से चले गये।
दूसरे दिन दीवान साहब को ज्वर हो आया। गुरुसेवक ने थर्मामीटर लगाकर देखा, तो ज्वर एक सौ चार डिग्री का था। घबराकर डॉक्टर को बुलाया। मनोरमा यह खबर पाते ही दौंड़ी चली आयी। उसने आते ही गुरुसेवक से कहा–मैंने आपसे कल ही कहा था, जाकर लौंगी अम्माँ को बुला लाइए लेकिन आप न गये। अब तक तो आप हरिद्वार से लौटते होते।
गुरुसेवक–मैं तो जाने को तैयार था, लेकिन जब कोई जाने भी दे। दादाजी से पूछा, तो वह मुझको बेबकूफ बनाने लगे। मैं कैसे चला जाता?
मनोरमा–तुम्हें पूछने की क्या ज़रूरत थी? इनकी दशा देख नहीं रहे हो। अब भी मौक़ा है। मैं इनकी देखभाल करती रहूँगी। तुम इस गाड़ी से चले जाओ और उसे साथ लाओ। वह इनकी बीमारी की ख़बर सुनकर एक क्षण भी न रुकेंगी। वह केवल तुम्हारे भय से नहीं आ रही है।
दीवान साहब मनोरमा को देखकर बोले–आओ, नोरा, मुझे तो आज ज्वर हो गया। गुरुसेवक कह रहा था कि तुम लौंगी को बुलाने जा रही हो। बेटी, इसमें तुम्हारा अपमान है। उसकी हज़ार दफ़ा गरज़ हो, आये, या न आये। भला, तुम उसे बुलाने जाओगी, तो दुनिया क्या कहेगी? सोचो, कितनी बदनामी की बात है!
मनोरमा–दुनिया जो चाहे कहें, मैंने भैया को भेज दिया है। वह तो स्टेशन पहुँच गये। होंगे। शायद गाड़ी पर सवार हो गये हों।
हरिसेवक–सच! यह तुमने क्या किया? लौंगी कभी न आयेगी।
मनोरमा–आएँगी क्यों नहीं? न आएँगी, तो मैं जाऊँगी और उसे मना लाऊँगी।
हरिसेवक–तुम उसे मनाने जाओगी? रानी मनोरमा लौंगी कहारिन को मनाने जाएँगी?
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