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उपन्यास >> कायाकल्प

कायाकल्प

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8516
आईएसबीएन :978-1-61301-086

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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....


मौलवी–ज़नाब, ज़िहाद करना कोई खालाजी का घर नहीं। आप दुनिया के बन्दे हैं, दीन की हक़ीक़त क्या समझें?

ख्वाज़ा–बज़ा है, आपकी शहादत तो कहीं नहीं गई है। ज़िल्लत तो हमारी है।

मौलवी–भाइयो, आप लोग ख्वाज़ा साहब की ज़्यादती देख रहे हैं। आप ही फैसला कीजिए कि दीनी मामलात में उलमा का फैसला वाज़िब है या उमरा का?

एक मोटे-ताजे दढ़ियल आदमी ने कहा–आप बिस्मिल्लाह कीजिए। उमरा को दीन से कोई सरोकार नहीं।

यह सुनते ही एक आदमी बड़ा-सा छुरा लेकर निकल पड़ा और कई आदमी गाय के सींग पकड़ने लगे। गाय अब तक तो चुपचाप खड़ी थी। छुरा देखते ही वह छटपटाने लगी। चक्रधर यह दृश्य देखकर तिलमिला उठे। निराशा और क्रोध से काँपते हुए बोले–भाइयों, एक ग़रीब, बेकस जानवर को मारना बहादुरी नहीं। खुदा बेकसों के खून से खुश नहीं होता। अगर ज़वाँमर्दी दिखानी है, तो किसी शेर का शिकार करो, किसी चीते को मारो, किसी जंगली सूअर का पीछा करो। उसकी क़ुर्बानी से मुमकिन है, खुदा खुश हो। जब तक हिन्दू सामने खड़े थे, किसी की हिम्मत न पड़ी कि छुरा हाथ में लेता। जब वे चले गए तो आप लोग शेर हो गए?

एक आदमी–तो क्यों चले गए? मैदान में क्यों न रहे? गौ-रक्षा का ज़ोश दिखाते। दुम दबाकर भाग क्यों खड़े हुए?

चक्रधर–भाग नहीं खड़े हुए और न लड़ने में वे आपसे कम ही हैं। उनकी समझ में यह बात आ गई कि जानवर की हिमायत में इन्सान का खून बहाना इन्सान को मुनासिब नहीं।

मौलवी–शुक्र हैं, उन्हें इतनी समझ तो आयी।

चक्रधर–लेकिन आप तो अभी तक उनकी दिलजारी पर कमर बाँधे हुए हैं खैर, आपको अख़्तियार है, जो चाहें, करें। मगर मैं यक़ीन के साथ कहता हूँ कि यह दिलजारी एक दिन रंग लाएगी। यह न समझिए कि इस वक़्त कोई हिन्दू मैदान में नहीं है। यह एक क़ुर्बानी हिन्दूस्तान के २१ करोड़ हिन्दुओं के दिलों में ज़ख्म कर देती है, और इतनी बड़ी तादाद के दिलों में ज़ख्म कर एक दिन पछतावे का बाइस हो सकता है? अगर आपकी गिज़ा है, तो शौक़ से खाइए। लाखों गायें रोज़ क़त्ल होती हैं, हिन्दू सिर नहीं उठाते। फिर यह क्यों कर मुमक़िन है कि वह आपके मज़हबी मामले में दखल दें? हिन्दुओं से ज़्यादा बेतअस्सुब क़ौम दुनिया में नहीं हैं, लेकिन जब आप उनकी दिलजारी और महज़ दिलजारी के लिए क़ुर्बानी करते हैं, तो उनको ज़रूर सदमा होता है और उनके दिलों में जो शोला उठता है, उसका आप कयास नहीं कर सकते। अगर आपको यक़ीन न आए, तो देख लीजिए कि गाय के साथ ही हिन्दू कितनी खुशी से अपनी जान दे देता है!

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