उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
यह कहते हुए चक्रधर ने तेजी से लपककर गाय की गर्दन पकड़ ली और बोले–आज आपको इस गाय के साथ एक इन्सान की भी क़ुर्बानी करनी पड़ेगी।
सभी आदमी चकित होकर चक्रधर की ओर ताकने लगे। मौलवी साहब ने क्रोध से उन्मत्त होकर कहा–कलाम-पाक की कसम, हट जाओ, वरना ग़ज़ब हो जाएगा।
चक्रधर–हो जाने दीजिए। खुदा की यही मर्ज़ी है कि आज गाय के साथ मेरी भी क़ुर्बानी हो।
ख्वाज़ा महमूद–क्यों भई, तुम्हारा घर कहाँ है?
चक्रधर–परदेशी मुसाफिर हूँ।
ख्वाज़ा-कसम खुदा की, तुम जैसा दिलेर आदमी नहीं देखा। नाम के लिए तो गाय को माता कहनेवाले बहुत हैं; पर ऐसे विरले ही देखे, जो गाय के पीछे जान लड़ा दें। तुम कलमा क्यों नहीं पढ़ लेते?
चक्रधर–मैं एक खुदा का कायल हूँ। वही सारे जहान का ख़ालिक और मालिक है। फिर और किस पर ईमान लाऊँ?
ख्वाज़ा–वल्लाह, तब तो तुम सच्चे मुसलमान हो। हमारे हज़रत को अल्लाहताला का रसूल मानते हो?
चक्रधर–बेशक मानता हूँ, उनकी इज़्ज़त करता हूँ और उनकी तौहीद का कायल हूँ।
ख्वाज़ा–हमारे साथ खानेपीने से परहेज़ तो नहीं करते?
चक्रधर–ज़रूर करता हूँ, उसी तरह जैसे किसी ब्राह्यण के साथ खाने से परहेज करता हूँ, अगर वह पाक-साफ़ न हो।
ख्वाज़ा–काश, तुम जैसे समझदार तुम्हारे और भाई भी होते। मगर यहाँ तो लोग हमें म्लेच्छ कहते हैं। यहाँ तक कि हमें कुत्तों से भी नजिस समझते हैं। उनकी थालियों में कुत्ते खाते हैं, पर मुसलमान उनके गिलास में पानी नहीं पी सकता। वल्लाह, आपसे मिलकर दिल खुश हो गया। अब कुछ-कुछ उम्मीद हो रही है कि शायद दोनों क़ौमों में इत्तफ़ाक हो जाए। अब आप जाइए। मैं आपको यक़ीन दिलाता हूँ, क़ुर्बानी न होगी।
चक्रधर–और साहबों से तो पूछिए।
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