लोगों की राय

उपन्यास >> कायाकल्प

कायाकल्प

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8516
आईएसबीएन :978-1-61301-086

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

320 पाठक हैं

राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....


यशोदा०–हाँ, खून जम गया है; लेकिन उन्हें उसकी कुछ परवाह की नहीं। डॉक्टर को बुला रहा हूँ।

वागीश्वरी–खा-पी चुकें, तो ज़रा देर के लिए यहीं भेज देना। मेरे लड़कों की जोड़ी तो हैं?

यशोदा०–अच्छी बात है। ज़रा सफा़ई कर लेना।

पड़ोस में एक डॉक्टर रहते थे। यशोदानन्दन ने उन्हें बुलाकर घाव पर पट्टी बँधवा दी। फिर देर तक बातें होती रहीं। धीरे-धीरे सारा मुहल्ला ज़मा हो गया। कई श्रद्धालु जनों ने चक्रधर के चरण छुए। आखिर भोजन का समय हुआ। जब लोग खाने बैठे, तो यशोदानन्दन ने कहा–भाई, बाबूजी से जो कुछ कहना हो, कह लो; फिर मुझसे शिकायत न करना कि तुम उन्हें नहीं लाये। बाबूजी, इस घर की तथा मुहल्ले की कई स्त्रियों की इच्छा है कि आपके दर्शन करें। आप को कोई आपत्ति तो नहीं है?

वागीश्वरी–हाँ बेटा, ज़रा देर के लिए चले आना; नहीं तो अपने घर जाकर कहोगे कि मैंने जिन लोगों के लिए जान लड़ा दी, उन्होंने बात भी न पूछी।

चक्रधर ने शरमाते हुए कहा–आप लोगों ने मेरी जो ख़ातिर की है, वह कभी नहीं भूल सकता। उसके लिए मैं सदैव एहसान मानता रहूँगा।

ज्यों ही लोग चौके से उठे, अहिल्या ने कमरे में सफ़ाई करनी शुरू की। दीवार की तस्वीरें साफ़ की, फ़र्श फिर से झाड़कर बिछाया; एक छोटी-सी मेज़ पर फूलों का गिलास रख दिया। एक कोने में अगरबत्ती जलाकर रख दी। पान बनाकर तश्तरी में रखे। इन कामों से फुर्सत पाकर उसने एकान्त में बैठकर फूलों की माला गूँथनी शुरू की। मन में सोचती थी कि न जाने कौन हैं, स्वाभाव कितना सरल है! लजाने में तो औरतों से भी बढ़े हुए हैं खाना खा चुके, पर सिर न उठाया। देखने में ब्राह्मण मालूम होते हैं। चेहरा देखकर तो कोई नहीं कह सकता कि वह इतने साहसी होंगे।

सहसा वागीश्वरी ने आकर कहा–बेटी, दोनों आदमी आ रहे हैं। साड़ी तो बदल लो।

अहिल्या ‘ऊँह’ करके रह गई। हाँ उसकी छाती में धड़कन होने लगी। एक क्षण में यशोदानन्दनजी चक्रधर को लिए कमरे में आए। वागीश्वरी और अहिल्या दोनों खड़ी हो गईं। यशोदानन्दन ने चक्रधर को कालीन पर बैठा दिया और खुद बाहर चले गए वागीश्वरी पंखा झलने लगी; लेकिन अहिल्या मूर्ति की भाँति खड़ी रही।

चक्रधर ने उड़ती हुई निग़ाहों से अहिल्या को देखा। ऐसा महसूस हुआ मानो कोमल, स्निग्ध एवं सुगन्धमय प्रकाश की लहर-सी आँखों में समा गई हो।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book