उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
वागीश्वर दवा देने चली गई। अहिल्या अकेली रह गई, तो चक्रधर ने उसकी ओर देखकर कहा–आपको मेरे कारण बड़ा कष्ट हुआ। मैं तो इस उपहार के योग्य न था।
अहिल्या–यह उपहार नहीं, भक्त की भेंट है।
चक्रधर–मेरा परम सौभाग्य है कि बैठे-बिठाए इस पद को पहुँच गया।
अहिल्या–आपने आज इस शहर के हिन्दू मात्र की लाज रख ली। क्या और पानी दूँ?
चक्रधर–तृप्त हो गया। आज मालूम हुआ कि जल में कितना स्वाद है? शायद अमृत में भी यह स्वाद न होगा।
वागीश्वरी ने आकर मुस्कुराते हुए कहा–भैया, तुमने तो आधी भी मिठाइयाँ नहीं खायीं। क्या इसे देखकर भूख-प्यास बन्द हो गई? यह मोहिनी है ज़रा इससे सचेत रहना।
अहिल्या–अम्माँ, तुम छोटे-बड़े किसी का लिहाज़ नहीं करतीं!
वागीश्वरी–अच्छा, बताओ, तुमने इनकी रक्षा के लिए कौन-कौन सी मनौतियाँ की थीं?
अहिल्या–मुझे आप दिक करेंगी, तो चली जाऊँगी।
चक्रधर यहाँ कोई घण्टे भर तक बैठे रहे। वागीश्वरी ने उनके घर का सारा वृत्तान्त पूछा–कितने भाई हैं, कितनी बहनें हैं, पिताजी, क्या करते हैं, बहनों का विवाह हुआ है या नहीं? चक्रधर को उनके व्यवहार में इतना मातृस्नेह भरा मालूम होता था, मानों उससे उनका परिचय है। चार बजते-बजते ख्वाज़ा महमूद के आने की ख़बर पाकर चक्रधर बाहर चले आए। और भी कितने ही आदमी मिलने आए थे। शाम तक उन लोगों में बातें होती रहीं। निश्चय हुआ कि पंचायत बनाई जाए और आपस के झगड़े उसी के द्वारा तय हुआ करें। चक्रधर को लोगों ने उस पंचायत का एक मेम्बर बनाया। रात को जब वागीश्वरी छत पर लेटीं, तो अहिल्या से पूछा–अहिल्या, सो गई क्या?
अहिल्या–नहीं अम्माँ, जाग रही हूँ।
वागीश्वरी–हाँ, आज तुझे क्यों नींद आएगी! इनसे ब्याह करेगी?
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