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उपन्यास >> कायाकल्प

कायाकल्प

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8516
आईएसबीएन :978-1-61301-086

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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....


वसुमती–क्या वह महारानी लड़ने के लिए कम थीं कि तुम उनका पक्ष लेकर आ दौड़े? पूछते क्यों नहीं, क्या हुआ, जो तीरों की बौछार करने लगे?

रोहिणी–आप क्या चाहती हैं कि मैं कान पकड़कर उठाऊँ या बैठाऊँ, तो यहाँ कुछ आपके पाँव में नहीं बसी हूँ कि कोई आपसे थर-थर काँपा करूँ!

ठाकुर–आखिर कुछ मालूम भी तो हो, क्या बात हुई?

रोहिणी–वही हुई, जो रोज़ होती है। मैंने हिरिया से कहा, ज़रा मेरे सिर में तेल डाल दे। मालकिन ने उसे तेल डालते देखा, तो आग हो गईं। तलवार खींचे हुए आ पहुँची और उसका हाथ पकड़कर खींच ले गयीं। आप आज निश्चित कर दीजिए कि हिरिया उन्हीं की लौंडी है या मेरी भी। यह निश्चय किए बिना आप यहाँ से न जाने पाएँगे।

वसुमती–वह क्या निश्चय करेंगे, निश्चय मैं करूँगी। हिरिया मेरे साथ मेरे नैहर से आयी है और लौंडी है। किसी दूसरे का उस पर कोई दावा नहीं है।

रोहिणी–सुना आपने? हिरिया पर किसी का दावा नहीं है, वह अकेली उन्हीं की लौंडी है।

ठाकुर–हिरिया इस घर में रहेगी, तो उसे सबका काम करना पड़ेगा।

वसुमती यह सुनकर जल उठी। नागिन की भाँति फुफकारकर बोली–इस वक़्त तो आपने चहेती रानी की ऐसी डिग्री कर दी मानो यहाँ उन्हीं का राज्य है। ऐसे ही न्यायशील होते, तो सन्तान का मुँह देखने को न तरसते!

ठाकुर साहब को ये शब्द बाण से लगे, कुछ जवाब न दिया। बाहर आकर कई मिनट तक मर्माहत दशा में बैठे रहे। वसुमती इतनी मुँहफट है, यह उन्हें आज मालूम हुआ। सोचा, मैंने तो कोई ऐसी बात नहीं कही थी, जिस पर वह इतना झल्ला जाती। मैंने क्या बुरा कहा कि हिरिया को सबका काम करना पड़ेगा। अगर हिरिया केवल उसी का काम करती, तो दो महरियाँ और रखनी पड़ती हैं। क्या वसुमती इतना भी नहीं समझती? ताना ही देना था, तो और कोई लगती हुई बात कह देती। यह तो कठोर-से-कठोर आघात है, जो वह मुझ पर कर सकती थी। ऐसी स्त्री का तो मुँह न देखना चाहिए।

सहसा उन्हें एक बात सूझी। मुंशीजी से बोले–ज्योतिष की भविष्यवाणी के विषय में आपके क्या विचार हैं? क्या यह हमेशा सच निकलती है?

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