उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
मुंशीजी असमंजस में पड़े कि इसका क्या जवाब दूँ। कैसा जवाब रुचिकर होगा–यही उनकी समझ नें न आया। अँधेरे में टटोलते हुए बोले–यह तो उसी विद्या के विषय में कहा जा सकता है, जहाँ अनुमान से काम न लिया जाएँ। ज्योतिष में बहुत कुछ पूर्व अनुभव और अनुमान ही से काम लिया जाता है।
ठाकुर–बस, ठीक यही मेरा विचार है। अगर ज्योतिष मुझे धनी बतलाए तो यह आवश्यक नहीं कि मैं धनी हो जाऊँ। ज्योतिष के धनी कहने पर भी सम्भव है कि मैं ज़िन्दगी भर कौड़ियों को मोहताज़ रहूँ। इस भाँति ज्योतिष का दरिद्र लक्ष्मी का कृपापात्र भी हो सकता है, क्यों?
मुंशीजी को अब भी पाँव ज़माने की भूमि न मिली। सन्दिग्ध भाव से बोले–हाँ, ज्योतिष की धारणा जब मनुष्यों से बदली जा सकती है, तो उसे विधि का लेख क्यों समझा जाए?
ठाकुर साहब ने बड़ी उत्सुकता से पूछा–अनुष्ठानों पर आपका विश्वास है।
मुंशीजी को ज़मीन मिल गई, बोले–अवश्य।
विशालसिंह यह तो जानते थे कि अनुष्ठानों से शंकाओं का निवारण होता है। शनि, राहु आदि का गमन करने के अनुष्ठानों से परिचित थे। बहुत दिनों से मंगल-व्रत भी रखते थे, लेकिन इन अनुष्ठानों पर अब उन्हें विश्वास न था। वह कोई ऐसा अनुष्ठान करना चाहते थे, जो किसी तरह निष्फल न हो। बोले–यदि आप यहाँ के किसी विद्वान ज्योतिषी से परिचित हों, तो कृपा करके उन्हें मेरे यहाँ से भेज दीजिएगा। मुझे एक विषय में उनसे कुछ पूछना है।
मुंशी–आज ही लीजिए, यहाँ एक से बढ़कर एक ज्योतिषी पड़े हुए हैं। आप मुझे कोई ग़ैर न समझिए। जब, जिस काम की इच्छा हो, मुझे कहला भेजिए। सिर के बल दौड़ा आऊँगा। बाज़ार से कोई अच्छी चीज़ मँगानी हो, मुझे हुक्म दीजिए। किसी वैद्य या हकीम की ज़रूरत हो, मुझे सूचना दीजिए। मैं तो जैसे महारानीजी को समझता हूँ, वैसा ही आपको भी समझता हूँ।
ठाकुर–मुझे आपसे ऐसी ही आशा है। ज़रा रानी साहब का कुशल समाचार जल्द-से-जल्द भेजिएगा। वहाँ आपके सिवा मेरा और कोई नहीं है। आप ही के ऊपर मेरा भरोसा है। ज़रा देखिएगा, कोई चीज़ इधर-उधर न होने पाए, यार लोग नोंच-खसोट न शुरू कर दें।
मुंशी–आप इससे निश्चिन्त रहें। मैं देखभाल करता रहूँगा।
ठाकुर–हो सके, तो ज़रा यह भी पता लगाइएगा कि रानी ने कहाँ-कहाँ से कितने रुपये क़र्ज़ लिये हैं।
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